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________________ धर्म-सूत्र (५) जिस प्रकार मूर्स गाढ़ीवान जान बूझकर साफ सुधरे राजमार्ग को छोड विपस (ऊँचे-नीचे, ऊबड - सावद ) मार्ग पर जाता है और गाडी को धुगे टूट जाने पर शोक करता है(६) उसी प्रकार मूर्ख मनुष्य धर्म को छोड़ अधर्म को ग्रहण कर, अन्त में मृत्यु के मुह मे पढकर जीवन की धुरी टूट जाने पर शोक करता है । ७ ) जो रात और दिन एक बार प्रतीत की थोर चले जाते हैं, वे फिर कभी वापस नही याते, जो मनुष्य अधर्म (पाप) करता है, उसके वे रात-दिन विकुल निष्फल जाते है | (5) जो रात और दिन एक बार प्रतीत की ओर चले जाते हैं, ये फिर कभी वापस नही श्राते, जो मनुष्य धर्म करता है उसके वे रात और दिन सफल हो जाते है । (६) जबतक बुढ़ापा नहीं सताता, जबतक व्याधियों नहीं बहतीं, जबतक इन्द्रियाँ होन ( श्रशक्त) नहीं होतीं, ततक धर्म का श्राचरण कर लेना चाहिये- -चाट मे कुछ नही होने का । P
SR No.007831
Book TitleMahaveer Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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