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________________ पुनर्मुद्रण नहीं है, बल्कि परिवर्धित आवृत्ति है जिसमें अधिक व्यापक दृष्टि से संकलन हुआ है. मेरे सुझाव पर इसमें मूल वचनों के संस्कृत रूपांतर भी दिये हैं. उससे महावीरवाणी समझने में सुलभता होगी। धम्मपद काल मान्य हो चुका है. महावीर-वाणी भी हो सकती है, अगर जैन-समाज एक विद्वत्-परिषद के जरिये पूरी छानवीन के साथ, वचनों का और उनके क्रम का निश्चय करके, एक प्रमाणभूत संग्रह लोगों के सामने रक्खे. मेरा जनसमाज को यह एक विशेष सुझाव है. अगर इस सूचना पर अमल किया गया तो, जैन विचार के प्रचार के लिये, जो पचासों किताबें लिखी जाती है, उनसे अधिक उपयोग इसका होगा. ऐसा अपौरुपेय संग्रह जब होगा तब होगा, पर तव तक पौरुपेय-संग्रह, व्यक्तिगत प्रयत्न से, जो होंगे वे भी उपयोगी होंगे। "साधक सहचरी” नाम से ऐसा ही एक संग्रह श्री संतवालजी का किया हुआ, प्रकाशित हुआ है. 'यह दूसरा प्रयत्न है. मैं चाहता हूं कि केवल जैन समाज ही नहीं, पर चित्त-शुद्धि की चाह रखनेवाले, जो जैन संप्रदाय के नहीं हैं वे भी, इसका चिंतन मनन करेंगे. पड़ाव छपरी (विहार) ३०-३-५३ -विनोवा [२१]
SR No.007831
Book TitleMahaveer Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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