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जातिमद - निवारण सूत्र
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( ३०४ )
जात्रा है, त्रियन है, तथा उम्र की सतान हे तथा लिच्छवी बश की प्रजा है ऐसा जो भिक्षा से थाजीवन रहने वाल भिन्नु है वह अभिमान मे बंधार अपने गांव का गर्व नहीं करता ।
( ३०५ )
जो ग्रुपने को घमह ने सयमयुक्त मानकर और अपनी बरावर परख न करके घमंड से अपने को ज्ञानी मान कर और मे कठोर तप कर रहा हूँ ऐसा घमंड करके दूसरे मनुष्य को केवल चीचा ( माचा) के समान समझता है अर्थात् तृणपुरुष के समान निकम्मा समझता है वह दुश्शील है, मृढ़ है, मूर्ख है और बाल है ।
( ३०६ )
बसे घमंडी की रक्षा उसकी कल्पित जाति से या कुल से नही हो मकनी, केवल मतका ज्ञान व सढाचरण ही रक्षा कर सकता है। ऐसा न समझकर जो त्यागी साधु होकर भी घमंड में चूर रहता है
ना नहीं है, गृहस्य है—मनार में लिपटा हुआ है और ऐसा मंत्री मुक्ति के मार्ग का पारगामी नहीं हो सकता ।