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मोक्षमार्ग-सूत्र
' (२६६) जब (अन्तरात्मा पर से) अज्ञानकालिमाजन्य कर्म-मल को दूर कर देता है, तब सर्वत्रगामी केवलज्ञान और केवलदर्शन को प्राप्त कर लेता है।
जब सर्वत्रगामी केवलनान और केवलदर्शन को प्राप्त कर लेता है, तब जिन तथा केवली होकर लोक और अलोक को जान लेता है।
(२६८) जब केवलज्ञानी जिन लोक-अलोकरूप समस्त ससार को जान लेता है, तब (आयु समाप्ति पर) मन, वचन और शरीर की प्रवृत्ति का निरोध कर शैलेशी (अचल-अकम्प) अवस्था को प्राप्त होता है।
(२६६) जब मन, वचन और शरीर के योगा का निरोध कर अात्मा शैलेशी अवस्था पाती है-पूर्णरूप से स्पन्दन-रहित हो जाती है, तब सब कर्मों को क्षय कर-मर्वथा मल-रहित होकर सिद्धि (मुक्ति) को प्राप्त होती है।
(३००) जब अात्मा सब कर्मों को क्षय कर-सर्वथा मलरहित होकर मिद्धि को पा लेती है, तब लोक के-मस्तक पर-~-ऊपर के अन भागपर स्थित होकर सदा काल के लिए मिद्ध हो जाती है।