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________________ ब्राह्मण-सूत्र १४३ (२५६) जो क्रोध से, हास्य से, लोभ अथवा भय से—किसी भी मलिन संकल्प से असत्य नहीं बोलता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। (२६०) जो सचित्त या अचित्त केई भी पदार्थ -~भले ही वह थोड़ा हो या अधिक, मालिक के सहर्ष दिये बिना चोरी से नहीं लेता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। जो देवता, मनुष्य तथा तियेच सम्बन्धी सभी प्रकार के मैथुन का मन, वाणों और शरीर से कभी सेवन नहीं करता, उसे हम. ब्राह्मण कहते हैं। (२६२) जिस प्रकार कमल जल में उत्पन्न होकर भो जल से लिप्त नहीं होता, उसी प्रकार जो संसार में रहकर भी काम-भोगों से सर्वथा अलिप्त रहता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं । (२६३) जो अलोलुप है, जो अनासक्त-जीवी है, जो अनगार (बिना घरवार का ) है, जो किचन है, जो गृहस्थों से अलिप्त है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।
SR No.007831
Book TitleMahaveer Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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