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________________ लोकतस्य सूत्र १२६ (२८) जीव, जीव, बन्व, पुण्य, पाप, ग्रास्त्रय, सवर, निर्जरा और मौन-ये नव सत्य-तत्व है । --- ( २२६ ) जीवादिक सत्य पदार्थों के अस्तित्व में सद्गुरु के उपदेश से, अथवा स्वय ही अपने भाव से श्रद्धान करना, सम्यक्त्व कहा गया है । ( २३० ) मुमुक्ष ग्रात्मा ज्ञान से जीवादिक पदार्थों को जानता है, दर्शन मे श्रद्धान करता है, चारित्र्च से भोग-वासनाग्रा का निग्रह करता है, और ता में कमलरहित होकर पूर्णतया शुद्ध हो जाता है । ( २३१ ) ज्ञान, दर्शन, चारित्र्य और तप-इस चतुष्टय श्रध्यात्ममार्ग को प्राप्त होकर मुमुक्ष जीव मोत्रम्प सद्गति पाते हैं । ( २३२ ) मति, श्रुन, अवधि, मन पर्याय र केवल इस माँति ज्ञान पांच प्रकार का है। ( २३३-२३४ ) ज्ञानवरणीय, दर्शनावरण य, बेढनीच, मोहनीय, ग्रायु, नाम, गोत्र और ग्रन्तराय - इस प्रकार सक्षेप में ये ग्राड कर्म बतलाये हैं ।
SR No.007831
Book TitleMahaveer Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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