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लोकतस्य सूत्र
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जीव, जीव, बन्व, पुण्य, पाप, ग्रास्त्रय, सवर, निर्जरा और
मौन-ये नव सत्य-तत्व है ।
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( २२६ )
जीवादिक सत्य पदार्थों के अस्तित्व में सद्गुरु के उपदेश से, अथवा स्वय ही अपने भाव से श्रद्धान करना, सम्यक्त्व कहा गया है ।
( २३० )
मुमुक्ष ग्रात्मा ज्ञान से जीवादिक पदार्थों को जानता है, दर्शन मे श्रद्धान करता है, चारित्र्च से भोग-वासनाग्रा का निग्रह करता है, और ता में कमलरहित होकर पूर्णतया शुद्ध हो जाता है । ( २३१ )
ज्ञान, दर्शन, चारित्र्य और तप-इस चतुष्टय श्रध्यात्ममार्ग को प्राप्त होकर मुमुक्ष जीव मोत्रम्प सद्गति पाते हैं । ( २३२ )
मति, श्रुन, अवधि, मन पर्याय र केवल इस माँति ज्ञान पांच प्रकार का है।
( २३३-२३४ )
ज्ञानवरणीय, दर्शनावरण य, बेढनीच, मोहनीय, ग्रायु, नाम, गोत्र और ग्रन्तराय - इस प्रकार सक्षेप में ये ग्राड कर्म बतलाये हैं ।