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पण्डित - सूत्र
( २०० )
समाधि की इच्छा रखने वाला तपस्वो भ्रमण परिमित तथा शुद्ध आहार ग्रहण करे, निपुण - बुद्धि के तत्वज्ञानी साथी की खोज करे, र ध्यान करने योग्य एकान्त स्थान में निवास करे ।
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( २०८ ) यदि अपने से गुणां में अधिक या समान गुणवाला साथी न मिले, तो पापक्रमों का परित्याग कर तथा काम भेगो मे सर्वथा अनासक्त रहकर अकेला ही विचरे । परन्तु दुराचारो का कभी भूल कर भी सग न करे ।
( २०६ )
ससार में नन्न-मरण के महान दुखो को देखकर और यह अच्छी तरह जानकर कि 'सत्र जोव सुख की इच्छा रखनेवाले हैं' हिंसा को मंक्ष का मार्ग समझकर सम्यक्त्वधार विद्वान कभी भी पाप कर्म नहीं करते ।
( २५० )
मूर्ख साधक कितना ही प्रयत्न क्यों न करें, किन्तु पाप कर्मो से पाप कर्मों को कदापि ना नही कर सकते । बुद्धिमान् साधक वे हैं जो पाप कर्मो के परित्याग से पाप कर्मों को नम्र करते हैं । अतएव लभ और भय से रहित सर्वदा सन्तुष्ट रहने वाले मेधावी पुरुष किसी भी प्रकार का पाप कर्म नहीं करते ।