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________________ : १६: बाल-मूत्र (१७) जो बाह--- मूर्ख मनुष्य काम-भोगों के मोहक दोषों में आसक हैं, हित तथा निश्रेयस के विचार से शून्य हैं, ये मन्दबुद्धि संसार में वैसे ही फंस जाते हैं, जैसे मक्खी श्लेष्म ( कफ ) में । ( १७६ ) जो मनुष्य काम-भोगों में घासत होते हैं, वे पाश में फंस कर बुरे से बुरे पाप कर्म कर डालते हैं। ऐसे लोगों की मान्यता होती है कि वो हमने देखा नहीं, और यह विद्यमान कान भोगों का श्रानन्द तो प्रत्यक्ष सिद्ध है 1 ( १-० ) "वर्तमान काल के काम-भोग हाथ मे है- पूर्ण तया स्वाधेन है । भविष्यकाळ मे परलोक के सुखों का क्या ठिकानामिले या न मिलें ? और यह भी कौन जानता है कि परलोक है भी या नहीं ।" ( १८१) "मैं तो सामान्य लोगों के साथ रहूंगा -- श्रर्थात् जैसी उनकी दशा होगी, वैसी मेरो भो हो जायगी" मूर्ख मनुष्य इस प्रकार घटता-मरो बातें किया करते हैं और काम-भोगों को शासक्ति के कारण अन्त मे महान् क्लेश पाते है ।
SR No.007831
Book TitleMahaveer Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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