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अशरण-सूत्र
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(१६) पढे हुए वेद यचा नहीं सकते, जिमाये हुए बाह्मण अन्धकार से अन्धकार में ही ले जाते हैं, पैदा क्येि हुए पुत्र भी रक्षा नहीं कर सकते मी दशा में कौन विवेकी पुरुष इन्हें स्वीकार करेगा?
(१७०) द्विपद (दास, दासी श्रादि), चतुष्पद (गाय, घोड़े श्रादि), क्षेत्र, गृह और धन-धान्य प्लब कुछ छोड़कर विवराता की दशा में प्राणो अपने कुन कमों के साथ अच्छे या घुरे परभव में चला जाता है।
(१७१) जिस तरह सिंह हिरण को पड़कर ले जाता है, उसी तरह अतममय मृत्यु भी मनुष्य को उठा ले जाती है। उस समय माता पिता, भाई श्रादि कोई भी उसके दुस में भागीदार नहीं होतेपरलोक में उसके गथ नहीं जाते।
(१७२) संसार में जितने भी प्राणी हैं, सब अपने कृत कर्मों के कारण ही दुसी होते हैं। अच्छा या बुरा जैसा भी कर्म हो, उसका फल भोगे बिना छुटकारा नहीं हो सकता।