________________
: १३ :
कृपाय - सूत्र
( १४२)
श्रनिगृहीत क्रोध और मान, तथा प्रवद्ध मान ( चढ़ते हुए ) माया और लोभ- ये चारों हो काले कुत्मित कपाय पुनर्जन्म रूपी संसार वृक्ष की जढो को सींचते है ।
(१४३)
जो मनुष्य यपना दिन चाहता है उसे पाप को बढ़ाने वाले कोव, मान, माया और लोभ-इन चार दोषों को सदा के लिये छोड़ देना चाहिए |
( १४४ )
कोच प्रीति का नाश करता है, मान विनय का नाश करता है, माया मित्रता का नाश करती है; और लोभ सभी सद्गुण का नाश कर देता है ।
( १४५)
शान्ति से ोध को मारो, नम्रता से अभिमान को जीतो, सरलता से माया का नाश करो, श्रीर सन्तोष से लोभ को काबू में लायो ।