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________________ :१२. प्रमाद-स्थान-सूत्र (१३०) प्रमाद को कर्म कहा गया ईशार अप्रमाद को अकर्म--अर्थात् जा प्रवृत्तियाँ प्रमाद-उन है ये कम-सन्धन करनेवाली है, और जो प्रवृत्तियों प्रमाद रहित है वे र्म-बन्धन नहीं करती। प्रमाद के होने थौर न होने से ही मनु माम मूर्य और पटित कहलाता है। जिस प्रकार अगुजी हे मे पैदा होती है और अंडा बगुली से पटा होना है, उसी प्रकार मोह का उत्पत्ति-स्थान तृष्णा है और ताण व उत्पत्ति स्थान मोह है। (१३) राग भार दंप-टोनी फर्म के चौज है । अतः मोह ही कर्म का उम्पादक माना गया है । क्म-सिद्धान्त के अनुभवी लोग कहते हैं कि ममार में जन्म-मरण का मूल कर्म है, और जन्ममरप~यही एकमान दुप्प है।
SR No.007831
Book TitleMahaveer Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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