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पल्लीवाल वैश्यों ने पल्लीवाल ब्राह्मणों की लगान के कारण और पल्लीवाल ब्राह्मणों ने राज्य के भूमि लगान के कारण पाली का त्याग कर दिया और पाली कमजोर हो गई। पल्लीवाल वैश्य उत्तरपूर्व और ब्राह्मण दक्षिण-पश्चिम की ओर गये। उत्तर पूर्व व्यापार धंधा के योग्य स्थल होने से वैश्य व्यापार धंधा और कुछ कृषि कार्य में प्रवृत्त और ब्राह्मण दक्षिण पश्चिम में कृषि कार्य में ही पूर्ववत प्रवृत्त हुए। आज भी दोनों वर्ग उक्त प्रकार ही उक्त प्रांतों में ही वास कर रहे हैं। वैश्य तो पाली त्याग के समय से पूर्व भी गुर्जर, सौराष्ट्र, मालवा, मध्य प्रदेशों में न्यूनाधिक संख्या में पहुँच गये थे, परंतु पूर्णतः पाली का त्याग इस जाति ने वि. की सतरहवीं शताब्दि में ही किया, यह विश्वस्त है।
ऐसा लिखा एवं जानने को भी मिला है कि पल्लीवाल वैश्य केवल पूर्व-उत्तर की ओर ही नहीं गये कुछ ब्राह्मणों के संग अथवा आगे पीछे पश्चिम की ओर जैसलमेर, बाड़मेर और दक्षिण में कच्छ, काठियावाड़ से आगे भी गये। ये कुशल व्यापारी तो थे ही। जैसलमेर जैसे अनपढ़, अछूत प्रदेश में इन्होंने तुरंत अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। वहाँ जागीरदार, भूमिपतियों को नकद रकम उधार देते
और उनकी समस्त आय ले लेते थे। किसानों के उपर भी इन नियमों का प्रभाव पड़ा और वे भी इनके वशवर्ती हो गये। कहते हैं कि जैसलमेर के दीवान सावनसिंह को वैश्यों का यह बढ़ता हुआ प्रभाव एवं प्रभुत्व बुरा लगा और उसने इनका बढता हआ प्रभुत्व रोका ही नहीं, लेकिन इनको जैसलमेर राज्य छोड़ देने तक के लिए बाधित किया और निदान तंग आकर ये वहाँ से अपने अभिनव निर्मित मकानों को पुनः छोड़कर बीकानेर, सिंध और पंजाब आदि प्रांतों की ओर बढ़े और जहाँ तहाँ बसे। इन प्रांतों में जहाँ-जहाँ ये पल्लीवाल वैश्य बस रहे हैं, उनमें प्रायः अधिक उस समय से ही बसते आ रहे हैं। जैसलमेर व बीकानेर राज्य के कई छोटे-बड़े ग्रामों में उजड़े मकान एवं खण्डहर उनकी स्मति आज भी करा रहे है। ऐसा जानने को मिलता है कि पाली के अधिकारी राजा ने पाली के श्रीमंत वैश्यों से यवन शत्रुओं के विरुद्ध युद्ध में अर्थ सहायता एवं जन सहाय मांगा और यह स्वीकार न करने पर उसने वैश्यों को पाली एक दम त्याग कर चले जाने की आज्ञा दी। यह भ्रामक एवं मिथ्या विचार है। तेरहवीं शताब्दि में राव सीहा का पाली पर प्रभुत्व स्थापित हो चुका था। उसके वंशजों में से आज पर्यंत किसी एक नृप को भी यवन सत्ता के विरुद्ध लड़ना न पड़ा। यह यवन शक्ति से लड़ने के लिए सहाय मांगने का विचार उठता ही नहीं। राव सींहा की सत्ता के पूर्व पाली पर जाबालिपुर के राजा का अधिकार था।
- श्री पल्लीवाल जैन इतिहास
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