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कौरव पांडव
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आचार्य श्री भुवनभानु सूरीश्वरजी महाराज
कौरव पांडव (जुआ, दीक्षा)
(१) पूर्व भव में द्रौपदी ने मुनि को कड़वे जहरी तूंबे का साग बहेराया। ( २ ) परठवने में जीव- हिंसा देख मुनि ने खा लिया, स्वर्ग गये। (३) मुनिहत्या से नरकादि भवभ्रमण । बाद अंगार जैसा शरीर होने से दो पतियों नें छोड दिया। (४) दीक्षा, कड़ी धूप में आतापना, पांच यारों से सेवा की जाती वेश्या को देख पांच पति का नियाणा (५) वरमाला द्रौ नें डाली अर्जुन के गले में, दिखी पांचों के। नारदजी से नियाणे की स्पष्टता । (६) जल मान कर धोती ऊँची पकड़ने से पांडवोंद्वारा दुर्योधन का उपहास (७) जूए में पांडव राज्य और द्रौपदी तक हारे, दुर्योधन की जीत। (८) सभा में द्रौपदीवस्त्रहरण । (९) कीचक वध । (१०) युद्धभूमि पर घायल भीष्म को देव के द्वारा दीक्षा समय की सूचना (११) अविरति होने से नारदजी नें द्रौ० से अ-बहुमान (१२) इसलिये नारदजी नें द्रौ० का अमर कंका में हरण करवाया। (१३) नौका न भेजने से कृष्णजी का पांडवों पर तीव्र रोष, देशनिकाले का हुकम (१४) कुंती, द्रौपदी सहित पांडवों की दीक्षा (१५) उग्र तपसे द्रौपदी स्वर्ग में और बाकी सिद्धचलजी पर मुक्त।