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परमार्हत् राजा कुमारपाल
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आचार्य श्री भुवनभानु सूरीश्वरजी महाराज
परमार्हत् राजा कुमारपाल (जीवदया )
(१) प्रजापीडाकारी नरवीर (कुमारपाल का जीव) को पिता के द्वारा देशनिकाला। (२) जंगल के मुनि को डाँटना, बाद में मुनि के उपदेश से सप्त व्यसन त्याग। ( ३ ) अपनी पांच कोडी के फूलों से जिन-पूजा । (४) श्री हेमचंद्राचार्य से श्रावक के १२ व्रत स्वीकार । (५) कुमा० के राज में घोड़ों को भी पानी छानकर पिलाते थे। (६) घोडे पर भी जीन दुपट्टे से पूंज कर कुमा० बैठते थे। (७) सामायिक में काटते चींटे को मर जाने के डर से खींच कर न निकाला, अपनी चमडी काटकर चींटे को दूर किया। (८) अपने १८ देशों में हिंसा न करने का ढंढोरा । (९) देवी के मांगने पर भी बलि न देने से देवी का प्रकोप, कुमा० को कोढ का रोग, हेम की कृपा से रोगनाश । (१०) जूं की हिंसा से जिन मंदिर बनवाने का जुर्माना (११) ताडपत्र की त्रुटि, खरताड़ ( लिखने के लिये अयोग्य) पत्र के वृक्षों की पूजा से वे श्रीताड (लिखने योग्य) बने । (१२) कुमा० को अजय ने जहर दिया और विषनाशक सीप भी न मिले इसलिये कोषाध्यक्ष को डाँटकर कूंजी ले ली। कुमा० का स्वर्गवास (१३) राजा बनने पर जिन मंदिर तुडवाने के उग्र पाप से अजयपाल और गुरुद्रोह के पाप से बालचंद्र मुनि दुर्गति में गये।