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कूरगडु नागदन्त
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आचार्य श्री भुवनभानु सूरीश्वरजी महाराज
तार्य
कूरगडु नागदन्त
(१) भूख सहन न कर सकने से रोज सुबह ही कूरगडु मुनि आहार पानी करते और साथ के उग्र तपस्वियों की सेवा भक्ति करते तपस्वी कूरगडु की निंदा करते। (२) आहार पानी लाकर गुरुदेव और मुनियों को बताया, उन्होंने तीव्र तिरस्कार किया, थूका भी (३) परंतु कूरगडु को तो आहार पानी करते, अपनी निंदा और तपस्वियों की प्रशंसा से केवल ज्ञान हुआ। यह जानकर तपस्वियों ने भी तीव्र पश्चाताप पूर्वक क्षमा माँगी और केवल ज्ञान प्राप्त किया।
मेतार्य (दया, क्षमा)
(१) साधुओं को मारने तक दुःख देनेवाले भतीजें (राजपुत्र) को इस घोर पाप से बचाने मुनि वहाँ गोचरी गये। दो कुमारों के कहने से मुनि का नाचना । कुमार के बजाने में भूल लाकर दोनों की हड्डियाँ उत्तार देना। खूब रोने लगे। पीड़ा दूर करने मुनि को राजा की बिनती और 'आराम होते ही दीक्षा लेना" इस शर्त से ठीक करना। (२) दोनों को दीक्षा दी। पुरोहित पुत्र साधुपने में मलिनता की बडी घृणा करता और कहता 'संयम (धर्म) अच्छा, मगर महाराज को जबरदस्ती नहीं करनी चाहियें" गुरू के इस अनादर से स्वर्ग के बाद भंगी बना और बरसों तक दीक्षा की इच्छा भी नहीं हुई। (३) बलात्कार से भी दीक्षा दिलवाने का अभिवचन देनेवाले देव (राजपुत्र के जीव) ने दीक्षा दिलवाई। सुनार के घर गोचरी गये। सोने के जौ खाते हुये वहाँ एक पक्षी को देखा। परंतु सत्य बात भी मुनि ने "पक्षी को सुनार जौ के लिये मार डालेगा इसलिए नही कही। (४) सुनार नें मेतार्य को चोर मानकर गीले चमडे की रस्सी से उनका सिर बांधकर घर में धूप में बैठा दिया। चमड़ा सूखते जाने से आंखे बाहर निकल पडी, समता से मैतार्य को केवलज्ञान हुआ।