________________
यतिअंतिमआराधना
७२
अथ सुकृतानुमोदना - थोडी घणी वेला पंच महाव्रत पाल्या हुवै। पांच समिति, त्रिणि गुप्ति, आठ प्रवचन पालवानी खप कीधी हुवै। आहार विहरतां खप कीधी हुवै। सूत्र सिद्धांत विध(धि)सु भण्या-भणाया हुवै। परति पानां सोझ्या हुवै। भणवा भणी परत कीधो हुवै। अरिहंतनौ वेयावच्च कीधी हुवै। साधुनौ, ग्लाननौ, तपसीनौ, आचार्यनौ उपाध्यायनौ, वाचना[९ब]चार्यनौ विनयवेयावच्च कीधौ हुवे। विधसुं उपधांनयोग वुहा हुवै। शत्रुजय, गिरनार, अष्टापदजी, आबूजी, सम्मेतसिखरजी, चंपापुरी, पावापुरी, राजग्रही, जेशलमेर, रांणपुरो, थंभणो, गउडी, फलोधी, अंतरीकजी प्रमुख तीर्थजात्रा कीधी हुवै। चौदस, पांचम, बीज, आठम, इग्यारस, वीसस्थानक, कल्याणकतिथि, प्रमुख तिथि तप कीधो हुवै। दुःखक्षय, कर्मक्षय निमित्त कावसग्ग कीधो हुवै। बारह भावना भावी हुवै। लाख नोकार गुण्या हुवै। गंठी, मुंठी, नवकारसी, पोरसी, साढपोरसी, पुरमड्ढ, आंबिल, उपवास, एकासणो, ब्यासणो, नीवी, दिवसचरम प्रमुख पच्चखाण दाझसं साचा कीधा हुवै। चरणसत्तरी करणसत्तरी भली परै पाली हुवै। इणभव परभव ते अणुमोदज्यौ॥
इतरै करी पहिलो सम्यक्त्व सूधो उचरायो १ पछै अढारै पापस्थानक वोसराया २ पछै चौरासीलाख जीवाजोनि खमावी ३ पछै संयमविराधना मिच्छा मि दुक्कडं दिरावी ४ पछै दुष्कृत गर्दा करावी ५ पछै सुकृतअनुमोदना करावी ६॥
वली अराधना करावीजै तिवारै विशेषपणे करावीजै संवर आखडी पच्चखाण विशेष, च्यार सरणा कराईजै। गंठी बंधावीजै। सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वकल्याणकारणम्। प्रधानं सर्वधर्माणां जैनं जयतु शासनम्॥१॥ इत्यादि।। बाणाष्टरसभौमाब्दौ (१६८५) रिणीनगरसंस्थितैः। यत्यन्त्याराधना चक्रे समयादिमसुन्दरैः॥१॥ यद्यत्याराधनां कृत्वा पुण्यस्योपार्जनं कृतम्। तेन प्रान्तवेलायां ममोदयमुपैतु सा॥२॥
इति यत्याराधनाभाषा श्रीसमयसुंदरविरच(चि)ता विधिसंपूर्णम्॥ ग्रंथमान ३५१ संख्या॥ सं. १८९९ मिति पोहवदि २ सोमवारे लि.।पं। दुलीचंद श्रीविक्रमपुरमध्ये चतुर्मासी कृतायाम्॥श्रीः॥