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________________ आत्मोपदेशमाला-प्रकरणम् अपच्छिमं तं नमिमो जिणेसरं जेणोवसग्गा सहिया तहाविहा। सुणिज्जमाणा भवणेसु दुस्सहा सल्लोवमं अज्ज वि जे लहंति॥१६९॥ (अर्थ) जिसने उस प्रकार उपसर्ग सहन किए है, उस महावीर जिनेश्वर(हम सब) नमस्कार करते हैं, जो दुःख सुनते हुए भवन में शल्य के समान आज भी प्राप्त होते हैं। धन्नो चिलाइपुत्तो मुइंगणियाहिं जस्स तणुमंतो। पविसरियं पुव्वकयं, दुक्कयमिव भक्खियं सव्वं॥१७०॥ (अर्थ) जिसके शरीर के अंत तक प्रवेश किए हुए पूर्व काय के दुःख के समान चिटियों के द्वारा सब भक्षन किया गया।(वह) चिलाति पुत्र धन्य है। __ धन्ना खंदगसीसा खिवियाण पालगेण जं तम्मि। जेसिं पत्ताणि खयं तणूणि कम्माणि समकालं॥१७१॥ (अर्थ) धन्य वे स्कन्दकशिष्य जिसको पालक ने उसमें डालकर जिनके एक ही समय में तनु ऐसे कर्म क्षय को प्राप्त हुए। गहिय-जिण-वयण-कवया धन्ना गिहिणो वि कामदेवाई। जेसि न भिन्नं हिययं लवं पि उवसग्गमाणेहि॥१७२॥ (अर्थ) उपसर्ग मान के द्वारा जिनका ह्रदय थोडा भी भिन्न नहीं हुआ, जिनवचन रूपी कवच जिन्होंने ग्रहण किया है ऐसे कामदेव आदि गृहस्थी धन्य हैं। रे! जीव! तिनि(रि)य-नारय-नर-सुरकुगईसु सहियणंतदुहो। रोगाईण दहाणं किं बीहसि लेसमित्ताणं॥१७३॥ ___ (अर्थ) अरे! जीव!(तु)तिर्यक्, नारक, मनुष्य, सुर आदि कुगति में अनंत दुःख सहन किए है, रोग आदि जो लेश मात्र दुःख हैं(उनसे) क्यों डरता है। सयमज्जियं पि न दुहं जत्थ सि मु(सु)क्खं अणज्जियं पि कह। कयनासे वा अकयागमो वि न कयावि रे होइ?॥१७४॥ (अर्थ) तु जहां है,(वहा) सचमुच खुद ने प्राप्त किया हुआ सुख भी नहीं है, जो प्राप्त ही नहीं किया वो कैसे?, किए हुए का नाश या नहीं किया उसका आगमन, और जो नहीं किया(उसका) विरोध किया जाता है। रे! किं दुहिओ झूरसि हा हा य सुहं ति जपतो। ___ अविहियधम्मो जो सो जाणिज्जसि अकहिए वि तुमं॥१७५॥ (अर्थ) रे! हा हा सुख ऐसा कहते हुए, दुःखित हुआ ऐसा तू क्यों स्मरण कर रहा है, जो अविहित धर्म है, वह तेरे द्वारा न कहते हुए भी जाना जाता है। कम्मेणा(ण) जणरिउणा जीव! तुमं पाविओ दुहा एवं। सव्वबलेणं अहुणा भावणखग्गेण तं हणसु॥१७६॥ (अर्थ) रे! जीव! जनरूपी शत्रु ऐसे कर्म के द्वारा तु दुःख को ही प्राप्त हुआ है, अब सर्वबल से भावना रूपी तलवार से उसको मारो।
SR No.007792
Book TitleShrutdeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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