SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुनि हर्षविजय रचित ॥पर्युषण गहुली॥ (प्रीतलडी बंधाणी रे अजित जिणंदसू ए देशी) [पर्व] पजूसणा आव्या रे श्रावक सांभलो, सरधावंतने धरमतणो छे राग जो। पं(पो)साने पडिकमणां सामायिक करो, भवसमुद्रमा तरवानो छे राग जो॥१॥ सेवोने गुरु नीग्रंथ देखीने, तरणतारण छे भवसमुद्रना झाझ जो। पूरव पुन्ये ते जोग वाइ पामीए, जेथी लहीये सेजे धरम समान जो॥२॥ व्याख्यान सांभलो तेनी आगले, जे समजावे जीवादीक सरूप जो। आत्मस्वरूप भ(प)णाथी सेजे कारज सजे, तेथी लहीये वंछित थान अनूप जो॥३॥ परभावना स्वामीवच्छल तिहां कीजे, अठाइ मोछव कीजे जिन प्रासाद। पुन्य(फूल) विकस्वर माल गूंथी सुगंधभरी, पूजा प्रकरण देखी मनने उल्लास जो॥४॥ छट्ठ अट्ठम कीजे गुरु पासे जई, गहुली करी गुरु पासे गावे नार जो। मुनि हर्षविजय ते पावे सुख स्वभावमुं, रागद्वेष ने टाली भवनो पार जो॥५॥ ॥इति गहुली पजूसणनी समाप्त।।
SR No.007792
Book TitleShrutdeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy