SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कल्याणकस्तुतिः कल्याणस्तुतिकार ने सर्वप्रथम मौन एकादशी की स्तुति की है। मगसिर सुद एकादशी को मौन एकादशी कहा जाता है। सनातन धर्म में इस तिथि को प्रबोधा एकादशी अथवा गीता एकादशी कहा जाता है। ऐसा मानते हैं कि- इस दिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। जैनधर्म में यह तिथि विशेष महत्त्व रखती है क्योंकि इस तिथि में वर्तमान चौवीसी के तीन तीर्थंकरों के पांच कल्याणक संपन्न हुए थे। जैनधर्म के अनुसार कल्याणक तिथियां शाश्वत होती है अर्थात् किसी भी क्षेत्र में किसी भी काल में सभी चौवीसी के तीर्थंकरों की कल्याण तिथियां एक ही होती है। वर्तमान की तरह अतीत और भविष्यकालीन तीर्थंकर के कल्याणक भी इसी दिन हुए है और १० क्षेत्र(५ भरत और ५ ऐरावत ) के चौवीसी के कल्याणक भी इसी दिन हुए है १० कर्मभूमि x ३ काल x ५ कल्याणक = १५० कल्याणक इस दिन हुए है। अतः मौन एकादशी महत्त्वपूर्ण तिथि है। इस दिन सभी तीर्थंकरों के कल्याणकों का जाप किया जाता है और देववंदन भी किया जाता है। जाप में पूरा दिन व्यतीत होने से सहजभाव से मौन होता है। अतः यह तिथि मौन एकादशी के नाम से प्रचलित है। प्रथम श्लोक में स्तुतिकार ने इसी भाव को अभिव्यक्त किया है। जिस तिथि में उन्नीसवें तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ भगवान के दीक्षा और केवलज्ञान ये दो कल्याणक हुए, इक्कीसवें तीर्थंकर श्री नमिनाथ भगवान का केवलज्ञान कल्याणक हुआ और सत्रहवें तीर्थंकर श्री अरनाथ भगवान का दीक्षा कल्याणक हुआ। वह तिथि सभी के लिये शुभ =प्रशस्य है। (१) द्वितीय श्लोक में पौषदशमी तिथि की महिमा दर्शाई है। पौष मास की कृष्णदशमी को पौषदशमी कहते हैं। यह तिथि तेइसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ भगवान के जन्म से पवित्र है। इस दिन भगवान के पिता अश्वसेन राजा के घर देवों का आगमन हुआ था और भगवान के पुण्य प्रभाव से घर समृद्धि से विराजित हुआ था। वह पवित्र तिथि हमारे मन को पवित्र करें।(२) पौष कृष्ण त्रयोदशी प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव का मोक्ष कल्याणक है। इस दिन आदिनाथ भगवान दस हजार साधुओं के साथ अष्टापदगिरि से मोक्ष में गये थे। यह पवित्र तिथि हमे भी पवित्रता प्रदान करें। ऐसी कामना तीसरे श्लोक में अभिव्यक्त की है।(३) चतुर्थ और पंचम श्लोक में सामान्य जिनस्तुति करते हुए स्तुतिकार कहते हैं कि तीर्थंकर प्रभुओं का आगमन(च्यवन), जन्म, दीक्षा, ज्ञानप्राप्ति और अपवर्गप्राप्ति के दिन महोत्सव के कारण उद्योतमय होते हैं। मैं उसका स्मरण करता हूँ। यह दिन मुझे सम्यग्दर्शन और समाधि प्रदायक हो।(४) जिनके पाँचों कल्याणक दिन उत्सवमय होते हैं। इन दिनों में पथ्वी स्वर्ग की शोभा धारण करती है। वे सभी जिनेश्वरदेव सर्वदा आनंदप्रद हो।(५) __ छठे श्लोक में प्रवचन की स्तुति प्रस्तुत है। काल से उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी में, क्षेत्र से सभी भरत और सभी ऐरावत क्षेत्र में, भूत-भावि और वर्तमान तीर्थोंकरों को कल्याणक के महिने, नक्षत्र और तिथि शाश्वत है। यह बात विज्ञ पुरुष प्रवचन से जानकर बताते हैं। उस प्रवचन को हम भक्तिपूर्वक नमस्कार करते हैं। अंतिम श्लोक में सम्यग्दृष्टि देवों की स्तुति प्रस्तुत है। इन्द्र आदि देव प्रत्येक तीर्थंकरों के कल्याणक की महिमा करते है। तीर्थंकरों के भक्ति की समक्ष वे देवलोक के तण समान मानते है। ऐसे भगवद्भक्ति रक्त इन्द्र आदि देव संघजनों का कल्याण करें।(७) इस प्रकार प्रस्तुत स्तुति में तीर्थंकरों के कल्याणकों की स्तुति की गई है। हस्तप्रत संपादन ___ इस बहुमूल्य कृति की एकमात्र प्रत हमे उपलब्ध हुई है, वह भी एक फुटकर पत्र के रूप में है। कृति के कर्ता एवं लेखक दोनों अज्ञात है। अक्षरों से ज्ञात होता है कि यह प्रत किसी जानकार व्यक्ति ने लिखी है क्यों कि-अक्षर में व्याकरण की अशुद्धियां नहीं के बराबर है। अक्षर सुवाच्य एवं आकर्षक है। लेखक कला के प्रेमी ज्ञात होते है। प्रत की पहली रेखा में ऊवमात्राओं को एवं हांसियां भेदक रेखाओं को सुशोभित किया है। मध्यफुल्लिका सुशोभित है। हांसिया मे भी सुशोभन
SR No.007792
Book TitleShrutdeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy