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नयामतम-२
[मूल]
प्रस्थक वसतिं पएस , दृष्टांतइं हुइ यथोत्तर। शुद्ध ए सवि मेली अर्थ विचारें, जैन मती ते बद्ध रे॥ भवि०॥३०॥ (२.१०) नय एकांत लेइ जे चालें, मिच्छावादि तेह । तेहनां वयण न सुणीयें कांने, धरीयें सुमकित रेह रे॥ भवि०॥३१॥ (२.११) माहोंमाहें नित्य विरोधी, नय सघला छे स्वामी। चक्री नृप परि पिण नित्य सेवें, तुझ आगमशिर नामी रे ॥ भवि०॥ ३२॥ (२.१२) नय योजन कुसुमइं म्हि पूज्या, वीरजिनेसर भावें। पंडित उत्तमसागर सेवक, न्यायसागर गुण गावे रें॥ भवि०॥ ३३॥(२.१३)
कलस
जय वीर जिनवर सयल सुखकर दुरित दुक्ख निवारणो, नय वयण रयणिं चरण पूजित नयन अमृत पारणो। तपगच्छ ताजा वड दिवाजा श्रीउत्तमसागर बुधवरो, तास सीस पभणे न्यायसागर सयल संघ मंगल करो॥३४॥(२.१४)
॥इति नयाः॥ हवें ए सात नय प्रस्थक (१), वसति २, प्रदेश ३, दृष्टांतें करी अवतारइ छ । तत्र प्रस्थक ते धान्य भरवानो माप कहीइ। कोइ देशइ टोइओ अथ पाली अपर नाम कहइ छ। कोई सूत्रधार प्रस्थक घडवानें काजें कुठार हाथि लेइ वन भणि चाल्यो छुइ। तेहवें एक पुरुष सन्मुख मील्यो तिणें पूछयो—तुं किहां जाइस? तिणें असुद्ध नैगमवादी हुइ उत्तर कह्यो हुं प्रस्थक छेदवा जाउं छु। एहनें विर्षे घणा गमा भासें छइ। प्रस्थक तो घणे कालें निपजसैं तिवारे पहेली केटलाइ व्यवसाय करस्ये पिण कारणने विषइं कार्यनो उपचार हैं। कारण ते काष्ट अमें कार्य ते प्रस्थका कारणथी कार्य ऊपजावणहार छै। ते मात्रै उपचारिं करी कहुं जे प्रस्थक छैदवा जाउं छु।
तथा सूत्रधार वनमांहि जाइ काष्ट छेदवा लागो तिवारें वलि कोइ पुरुषं पूछ्यौ—तुं स्यूं छेदें छइ? तिवारें कहुं हुं प्रस्थक छेदं छु। कारणनें विर्षे कार्यनो उपचार हैं। ते माटें काष्ट अमें कहें प्रस्थक छेदूं छु। ए पहिला नैगमथी कांइक शुद्ध छई। कांइ एक प्रस्थकनें ए क्रिया ढुकडि ते मांटे। ___ तथा वासलातूं ते सूत्रधार काष्ट छेदें घटइ छ। तिवारै कोइ एके पूछ्यो—तुं स्यूं घडे छइ? तिवारें कहिउँ प्रस्थक घडं छु। ए बीजाथी शुद्ध छ। ___ तथा सूत्रधार वीजणे करी काष्ट उकेरतो हुतो तिवारे कोए एकइं पूछ्युं तुं स्यूं उकेरे छइ? तिवारे तेणें कडुं हुं प्रस्थक उकेरुं छु। त्रीजाथी शुद्ध छै। तथा सवली सरहाणइ चढ्यो देखीने पूछ्युं—जे तुं स्युं समारे ? तिवारे का—जे प्रस्थक समारं छु। ए चोथाथी शुद्ध छइ। इम जावत् प्रस्थक न नीपजें तावते जे जे वचन कहे ते सर्व नैगमनय कहिये।