SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नयामृतम्-२ ___ हवे संग्रह कहे छइ। ते पुरुष जिवारें आसनादिकने विषं बेठो हुंइ तिवारे वसतो कहिइं, जिवारें चलनक्रिया भजे ॐ तिवारें वसतो न कहिये। इम सर्वत्र बे ठाने ज वसतो कहिइ इति संग्रहः। हवे ऋजुसूत्र कहे छइं आकाशनें विषइं तो घणा आकाश प्रदेश छइं ते माटइं सर्वनइं विषई वसतो न कहिइ, जेतला आकाश प्रदेश रोक्या छे तेतलाने ज वि वसे छ। ते पिण वर्तमान समये वसतो कहिये पिण अतीत अनागत कालें न कहिये। इति ऋजुसूत्रः। ___ हवें शब्दादिक त्रिण नय कहे छइ। ते पुरुष वसे 3 पिण आत्मस्वरूपें ज पिण परस्वरूपें नथी वसतों जे जे वस्तु वर्ते छइ ते सर्वे आप आपणे स्वभावें पिण परस्वभावें न कहिए। सर्वं वस्तुं स्वात्मन्येव वर्तते न तु आत्मव्यतिरिक्तेऽधिकरणे इति वचनात्। इति वसतिदृष्टान्तः। हवे प्रदेश दृष्टांते सात नय अवतारें छई। जिम को एक पंडित मंडलीने वि प्रदेशनी चर्चा थाइं छे। तिवारे कोइ एक नवतरें पुरूषे पूछ्यो। ते प्रदेश केहा? तिवारें एक नैगमनय लैइ बोल्यो छनो प्रदेश। छ ते कुण? धर्मास्तिकाय (१), अधर्मास्तिकाय (२), आकाशास्तिकाय (३), जीवास्तिकाय (४), पुद्गलास्तिकाय (५), देश (६)। देश ति सकल द्रव्यनो भिन्न विवक्ष्यो छइ। ए छनो प्रदेश कहितां छ प्रदेश भाख्या ते माटें नैगम न कहीयइ। तिवारें पछी संग्रहनय बोल्यो अरे! नैगम तुं छनो प्रदेश न कहें, पांचनो कहे। धर्मास्तिकाय (१), अधर्मास्तिकाय (२), आकाशास्तिकाय (३), जीवास्तिकाय (४), पुद्गलास्तिकाय (५) ए पांचनों कहैं, पिण छठो देश भिन्न न कहैं ते कोइ पंचास्तिकायथी जूयो नथी देश तो द्रव्यमांहें ज अंतर्भवि छइ। सामान्यपणे एक प्रदेश पांचनो कहइ। हवें व्यवहार बोल्यो—अरे! संग्रह तुं इम म कहें जे पांचनो एक प्रदेश छै। पांचनो तो कहिये जो साधारण होइं पंचभर्तृनिधानवत्। ते माटे म कहैं पंचविध प्रदेशः प्रदेश पांच प्रकारनो छ। धर्मास्तिकायनो संबंधी (१), अधर्मास्तिकायनो संबंधी (२), आकाशास्तिकायनो संबंधी (३), जीवास्तिकायनो संबंधी (४), पुद्गलास्तिकायनो संबंधी (५) एवं पंचविधः। प★ ऋजुसूत्र बोल्यो—अरे! व्यवहार तुं पंचविध प्रदेश कहै छइ तें म कहैं प्रदेश तो पंचास्तिकायने विर्षे हैं। ते एकेक प्रदेश पांच प्रकारनो कहीयें तो पांच पांचां पचवीस प्रदेश थाइं ते मा भाज्य प्रदेश कहें। भाज्य कहितां भजना एतलें एक प्रदेशने विषं पांच विकल्प छइं। यथा धर्मास्तिकायप्रदेश (१), किंवा अधर्मास्तिकायप्रदेश (२), अथवा आकाशास्तिकायप्रदेश (३), उत जीवास्तिकायप्रदेश (४), किंवा पद्लास्तिकायप्रदेश (५). एवं पंच विकल्प कहि। पछै शब्दनय बोल्यो—अरे! ऋजुसूत्र तुं भाज्य प्रदेश कहै छै ति म कहैं इम कहेता एकनें पांचनी भजना हुस्यें, पांच पुरुषना सेवकनी परें। किंवारेक धर्मास्तिकायनो हुस्य, किवारेक अधर्मास्तिकायनो हुस्य। एम पांचनी भजना होस्यै के पांमस्यै ते माटें इम कहैं धर्मप्रदेशः, अधर्मप्रदेशः इत्यादिक पांचमांहिं एक कोइ एक निरधार करीनें कहइं। पछइं समभिरूढे बोल्यो धर्मप्रदेशः कहेतां व्याकरणने विषं बें समास भासै छइ। एक तत्पुरुष (१), बीजो कर्मधारय (२), जो तत्पुरुष कीजें तो धर्मे प्रदेशो धर्मप्रदेशः इम कहितां धर्म अमें प्रदेशने विर्षे भेद पामें छे। भेदे तत्पुरुष इति वचनात्। अमें धर्मश्चासौ प्रदेशश्च धर्मप्रदेश इति कर्मधारयें धर्मद्रव्य विशिष्ट प्रदेश छइं ए समासं करता
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy