________________ 837 भासगाहा-५५८६-५५९३] चउत्थो उद्देसो जेणऽधियं ऊणं वा, ददाति तावति अमप्पणा पावे। अहवा सुत्तादेसा, पावति चतुरो अणुग्धाता // 5591 // "थोवं०"["जेणऽधियं०"] गाहा / जइ थेवे बहुयं देज्जा जावइएण अहियं तं पावइ / अहवा बहुए थोवं देइ जावइएणं ण पूरेति तं देंतओ पावइ / अहवा थेवे अहियं वा देंतस्स सुत्तादेसेण :: / (चतुर्गुरु) / अध सो सुतेणं विज्जंतं णेच्छइ तो भण्णति-अण्णत्थ सोधिं करेहि / एसा निज्जूहणा। बितियं उप्पाएतुं, सासणपंते असज्झे पंच वि पयाई। आगाढे कारणम्मि, रायसंसारिए जतणा // 5592 // "बितियं०" गाहा / बितियपदे उप्पाएज्जा / सो सासणपंतो असज्झो ण सक्केति सासिउ, ताहे संजए सहाए गेण्हेज्जा / गिहत्था य गाम-नगर-देस-रज्जाए / एते पंच पदा रायसंसारियं पि करेज्जा जयणाए, विभासा / सो पुण सासेंतओ इमेरिसो विज्जाओरस्सबली, तेयसलद्धी सहायलद्धी वा / उप्पादेउं सासति, अतिपंतं कालकज्जो वा // 5593 // "विज्जा०" गाहा / अन्नो वि वंसो ठविज्जति / जधा-अज्जकालएणं सगवंसो। ॥अहिगरणपगयं समत्तं //