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२२४ विसेसचुण्णि
[वगडापगयं एसेव गुरु निविद्वे, ट्ठियम्मि मासो लहू उ भिक्खुस्स । एक्केक्क ठाण वुड्डी, चउगुरुअंतं च आयरिए ॥२२४८॥
"एसेव गुरु निविटे०" गाहा । णिविट्ठस्स एसेव विही । नवरं भिन्नमासो गुरु, उट्ठियस्स मासियं लहुयं । एएणेव विहिणा एवं ताव भिक्खुस्स अभिसेगस्सं भिन्नमासे गुरुए आरद्धं गुरुए मासे ठाइ । उवज्झायस्स मासलहुए आरद्धं चतुलहुए ठाइ । आयरियस्स मासगुरुए आरद्धं चउगुरुए ठाति । अहवा ठियस्स इमा गाहा पुरातणा -
दोहि वि रहिय सकामं, पकाम दोहिं पि पेक्खई जो उ।
चउरो य अनुग्घाया, दोहि वि चरिमस्स दोहि गुरु ॥२२४९॥ [ नि०] "दोहि वि रहिय०" गाहा । अस्य व्याख्या - पायठिओं दोहिँ नयणेहि पिच्छई रहिय मोत्तु एक्केणं । तं पुण सई सकामं, निरंतरं होइ उ पकामं ॥२२५०॥
"पायठिओ०१" गाहा । 'दोहि वि०' त्ति पद्भ्यां स्थितः । नयनद्वयेनापि निरीक्षते । रहित इति । एगेन नयनेन निरीक्षते । यत्र नयनद्वयेन निरीक्षते तत् सकामं प्रकामं वा निरीक्षते । सकामं ति सकृन्निरीक्षणं । पकामं निरंतरनिरीक्षणं, यदप्येकेन नयनेन निरीक्षते तदपि सकामं पकामं चेति ।
अहवण उच्चावेउं, करविंटयपीढगादिसुं काउं । ताई वा वि पमोत्तुं, रहियं विट्ठो पुण निसिज्जं ॥२२५१॥२
"अहवण०" गाहा । अहवा रहितमिति सिरं उच्चलित्ता निरीक्षति, हत्थे वा सिरस्स हेट्ठा काउं निरिक्खइ, विंटियाए वा सिरं काउं निरक्खइ, पीढगादिसु वा सिरं काउं निरिक्खइ। अहवा वेंटियपीढगादिसु पुव्वकयं सिरं अपेक्खमाणो उवविसित्ता णिसेज्जाए णिरक्खेइ ।
अहवण समतलपादो, दोहिँ वि रहिअं तु अग्गपाएहिं । इट्टालादी विरह, एक्केक्क सकामग पकामं ॥२२५२॥
"अहवण" गाहा । समतलपादो जं निरिक्खइ तं अरहितं । जं मग्गपादठिओ निरिक्खइ तं रहियं भण्णइ । अहवा इट्टालादिसु आरूढो जं पिक्खइ तं रहियं । एएसिं अरहिय-रहियाणं एक्केक्कं सकामं पकामं च । तल्लक्षणं पूर्वोक्तमेव ।
१. पारद?ओ ब क ड। पायठिओं मुच । २. मलवृत्तौ ५१-५२ गाथाद्वयं व्युत्क्रमेण वर्तते।