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________________ चतुर्थः प्रकीर्णकतरङ्गः [मूल] शीतं सुधोपमं स्वच्छं सलिलं हृदयप्रियम्। श्रममूर्छाभ्रमहरं वर्णदं पित्तनाशनम्॥२९७॥(४.३२) (अन्वयः) शीतं सुधोपमं स्वच्छं हृदयप्रियं सलिलं श्रममूर्छाभ्रमहरं वर्णदं पित्तनाशनम्। (अर्थः) ठण्डा, अमृत के समान, स्वच्छ, हृदय को प्रिय ऐसा पानी श्रम की मूर्छा का हरन करनेवाला, कांति प्रदान करने वाला तथा पित्त का नाश करनेवाला होता है। [मूल] सदा सर्वेषु भैषज्येष्वशक्तो यः पुमान्भवेत्। भक्षणीया सदा तेन तोयेनैका हरीतकी॥२९८॥(४.३३) (अन्वयः) यः पुमान् सदा सर्वेषु भैषज्येष्वशक्तो भवेत् तेन तोयेनैका हरीतकी सदा भक्षणीया। (अर्थः) जो पुरुष हमेशा सभी तरह के दवाओं को खरीदने में असमर्थ है उसके द्वारा हमेशा पानी के साथ एक हरडे का सेवन करना चाहिए। [मूल] तीक्ष्णबुद्धिप्रदा स्वर्या जराव्याधिविनाशिनी। अग्न्युद्दीपनरेचनकामानां हितकारीणी॥३९९॥ (४.३४) (अन्वयः) तीक्ष्णबुद्धिप्रदा स्वा जराव्याधिविनाशिनीयं अग्न्युद्दीपनी रेचका हरीतकी हितकारीणी माता । (अर्थः) तीक्ष्ण बुद्धि को देने वाली, स्वर को सुधारने वाली, बुढापा रूपी व्याधि का विनाश करने वाली,अग्नि का उद्दीपन करने की इच्छा वाले के लिए, रेच लेने की इच्छा वाले के लिए यह हरडे हितकारी है। [मूल] मूर्खदत्तं कुभूमिस्थं शटितं कृमिभक्षितम्। अविज्ञातं च भैषज्यं न ग्राह्यं शुभमिच्छता॥३००॥(४.३५) (अन्वयः) शुभम् इच्छता मूर्खदत्तं कुभूमिस्थं शटितं कृमिभक्षितम् अविज्ञातं च भैषज्यं न ग्राह्यम्। (अर्थः) कल्याण की इच्छा करने वाले के द्वारा मूर्ख ने दिया हुआ, बंजर भूमी पर पड़ा हुआ,किसीने फेंका हुआ , कीडों के द्वारा खाया हुआ तथा अपरिचित औषध का ग्रहण नहीं करना चाहिए। [मूल] भुक्त्यादौ सलिलं पीतं कार्यं मध्ये समानताम्। स्थूलत्वमपि भुक्त्यन्ते करोति वपुषि ध्रुवम्॥३०१॥(४.३६) (अन्वयः) भुक्त्यादौ पीतं सलिलं कायं मध्ये समानताम् भुक्त्यन्ते स्थूलत्वमपि वपुषि ध्रुवम् करोति। (अर्थः) भोजन से पहले पीया हुआ पानी कृशता, बीच में पीया हुआ पानी सुडौलता तथा भोजन के बाद पिया हुआ पानी निश्चित स्थूलता करता है। [मूल] वस्त्रपूतं पिबेत्तोयं यः श्रीगुरुसुरातिथीन्। अर्चयित्वा सदा भुङ्क्ते ततः पाप्मा पलायते॥३०२॥(४.३७) १. अयं श्लोकः हस्तप्रतिषु न दृश्यते-को२०००८, को१५९३२, ओ २८७८
SR No.007785
Book TitleBuddhisagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangramsinh Soni
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2016
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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