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________________ चतुर्थः प्रकीर्णकतरङ्गः ५७ (अन्वयः) यत्नपरो हिताशी वर्षाहिमग्रीष्मचितं विकारं विशोधयेत्, तस्य शरद्वसन्ताभ्रदिनेषु तज्जाः रोगाः न प्रभवन्ति। (अर्थः) प्रयत्न परायण, हित की इच्छा रखने वाला पुरुष बारीश, सर्दी और गरमी के संचित रोगों का शोधन करे, उसको शरद, वसन्त, वर्षा के दिनों मे प्रसिद्ध ऐसे रोगों का प्रभाव नही होगा। [मूल] मधौ(माघे) मधुरमश्नाति निदाघे मैथुनप्रियः। पिबेन्नद्यम्बु वर्षासु दधिभोक्ता शरत्सु च॥२८७॥(४.२२) |मूल] हिमागमेऽतिनिद्रालुः शिशिरे लघुभोजनम्। यः करोति विमूढत्वात् स नरो रोगवान् भवेत्॥२८८॥(४.२३) युग्मम्। (अन्वयः) विमूढत्वात् यः माघे मधुरम् अश्नाति, निदाघे मैथुनप्रियः, वर्षासु नद्यम्बु पिबेत्, शरत्सु दधिभोक्ता, हिमागमेऽतिनिद्रालुः शिशिरे लघुभोजनं च करोति स नरो रोगवान् भवेत्। (अर्थः) अज्ञान से जो पुरुष माघ ऋतु में मीठा खाता है, ग्रीष्म ऋतु में मैथुन प्रिय होता है , वर्षा ऋतु में नदी का पानी पीता है, शरद ऋतु में दही का सेवन करता है, ठंडी में ज्यादा सोता है, शिशिर ऋतु में कम भोजन करता है वह रोगयुक्त होता है। [मूल] आरामं जलकेलिं च हन॑ क्षीरं च वल्लभाम्। मिष्टान्नं च भजेत् षट्सु वसन्तादिष्वनुक्रमात्॥२८९॥(४.२४) (अन्वयः) षट्सु वसन्तादिषु आरामम्, जलकेलिं हर्म्यं क्षीरं वल्लभां मिष्टान्नं च अनुक्रमात् भजेत्। (अर्थः) वसन्तादि छह ऋतुओं में (वसंत ऋतु में) बगीचे, (ग्रीष्म ऋतु में) जलक्रीडा, (वर्षा ऋतु __ में)प्रासाद(महल), (शरद ऋतु में)दूध,( हेमंत ऋतु में) पत्नी, (शिशिर ऋतु में)मिष्टान्न इनका यथाक्रम सेवन करना चाहिए। [मूल] यो भुङ्क्ते मात्रया नित्यं यथाकालं हिते रतः। दिनचर्यां समुद्दिष्टं स्वस्थः कुर्वन्न रोगभाक्॥२९०॥(४.२५) (अन्वयः) हिते रतः यो यथाकालं नित्यं मात्रया भुङ्क्ते, समुद्दिष्टं दिनचर्यां कुर्वन् स्वस्थः (सः) न रोगभाक् (भवति)। (अर्थः) हित में रत जो काल के अनुसार हमेशा मात्रा के अनुसार भोजन करता है, विशिष्ट दिनचर्या को करता हुआ वह स्वस्थ किसी भी रोग से युक्त नहीं होता। [मूल] अजीर्णे सति यो भुङ्क्ते कुपथ्यं कुरुते सदा। तच्छरीरं कथं लोके भवेद व्याधिविवर्जितम्?॥२९१॥(४.२६) (अन्वयः) अजीर्णे सति यो भुङ्क्ते, सदा कुपथ्यं कुरुते, तच्छरीरं लोके कथं व्याधिविवर्जितम् भवेत्? (अर्थः) जो अजीर्ण होने पर भोजन करता है हमेशा कुपथ्य का सेवन करता है उसका शरीर लोक में कैसे रोगों से रहित होगा?
SR No.007785
Book TitleBuddhisagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangramsinh Soni
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2016
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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