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बुद्धिसागरः
(अर्थः) युद्ध और बादल में समानता है। दोनों पुण्य की उन्नति के कारण हैं, दोनों लोगों को जीवन देते हैं,
दोनों निःस्पृह होने के कारण परोपकार रसिक हैं। अतः दोनों के बीच दूसरों के ताप दूर करने में कौन महापंडित है ? ऐसा वाद उचित है। आश्चर्य इस बात का है कि- एक (बादल) त्याग करने से
प्रसन्न है, किंतु दूसरा(युद्ध) प्रसन्न नहि है। [मूल] स कथं कथ्यते सद्भिर्नीतिशास्त्रैककोविदः।
वैरिणं विश्वसेद्यस्तु विषवैश्वानरोपमम्?॥१४७॥(२.६०) (अन्वयः) यः विषवैश्वानरोपमं वैरिणं विश्वसेत्, सः सद्भिः नीतिशास्त्रैककोविदः कथं कथ्यते? (अर्थः) जो विष और अग्नि के समान शत्रु पर विश्वास रखता है, वह विद्वानों के द्वारा नीतिशास्त्रों में निपुण
है, ऐसा कैसे कहा जाता है? [मूल] दर्जनोक्तानि वाक्यानि प्रियाणि मधुराण्यपि।
अकालकुसुमानीव विरुद्धं सूचयन्ति हि॥१४८॥(२.६१) (अन्वयः) दुर्जनोक्तानि प्रियाणि मधुराणि वाक्यानि अपि अकालकुसुमानि इव विरुद्धं हि सूचयन्ति। (अर्थः) दुर्जनों के द्वारा कहा गए प्रिय और मधुर वाक्य भी असमयपर आने वाले फूल की तरह विपरीत हि
सूचित करते हैं। [मूल] अमर्षलोभमोहाद्यैः सभायां न्यायमन्यथा।
ब्रूते यस्तन्मुखं दृष्ट्वा नरः सूर्यं विलोकयेत्॥१४९॥(२.६२) (अन्वयः) यः अमर्षलोभमोहाद्यैः सभायाम् अन्यथा न्यायं ब्रूते नरः तन्मुखं दृष्ट्वा सूर्यं विलोकयेत्। (अर्थः) जो क्रोध, लोभ, मोह आदि के द्वारा सभा में विपरीत न्याय को कहता है, उस पुरुष का मुख देखकर
सूर्य को देखना चाहिए। [मूल] नृपमानाभिमानी यो वैरकारी समन्ततः।
यदि राजकुमारोऽपि नरः शीघ्रं विनश्यति॥१५०॥(२.६३) (अन्वयः) नृपमानाभिमानी समन्ततः वैरकारी यः नरः(सः) यदि राजकुमारः अपि शीघ्रं विनश्यति। (अर्थः) राजा के मान का अभिमान रखने वाला, सभी ओर से वैर करने वाला पुरुष यदि राजकुमार (हो) तो
भी शीघ्र ही नष्ट होता है।
[मूल]
अथाधिकारिणः। धनोत्पत्तिमनालोच्य योऽधिकारी भवेन्नरः। व्ययं कर्तुंर्तुः) विनाऽऽयं वा तस्य स्वप्नेऽपि नो सुखम्॥१५१॥(२.६४)