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________________ बुद्धिसागरः अथ मन्त्रिणः। [मूल] सङ्ग्रामे विजयः पुण्यं राज्यवृद्धिर्यशो धनम्। दुरमात्ये विनश्यन्ति सम्भवन्ति सुमन्त्रिणि॥१३६॥(२.४९) (अन्वयः) सङ्ग्रामे विजयः पुण्यं राज्यवृद्धिर्यशो धनं दुरमात्ये विनश्यन्ति सुमन्त्रिणि सम्भवन्ति। (अर्थः) युद्ध में विजय, पुण्य, राज्य की वृद्धि, यशरूपी धन का दुष्ट मंत्री होने पर नाश होता है, और अच्छे मंत्री होने पर प्राप्ति होती है। [मूल) दुरमात्योपदेशेन कृते कार्ये त्वघं महत्। दुर्यशोभाजनं वह्निामदाहे न मारुतः॥१३७॥(२.५०) (अन्वयः) दुरमात्योपदेशेन कृते कार्ये त्वघं महत्, ग्रामदाहे दुर्यशोभाजनं वह्निः, न मारुतः। (अर्थः) दुष्ट मंत्री के उपदेश से कार्य करने पर राजाको भारी नुकसान होता है। गांव जलता है तो अपयश अग्नि को मिलता है, पवन को नहि। [मूल] अतो महीपतिर्दुष्टमकुलीनं स्ववंशजम्। अज्ञातशीलमहितं दुराचारं च दुर्मुखम्॥१३८॥(२.५१) [मूल| मूर्खमन्यायकर्तारं सदा लोभैकलोलुपम्। निर्दयं व्यसनासक्तं नामात्यत्वे नियोजयेत्॥१३९॥(२.५२) युग्मम्॥ (अन्वयः) अतो महीपतिः दुष्टम्, अकुलीनम्, स्ववंशजम्, अज्ञातशीलम्, अहितम्, दुराचारम्, दुर्मुखम्, मूर्खम्, अन्यायकर्तारम्, सदा लोभैकलोलुपम्, निर्दयम्, व्यसनासक्तं च नामात्यत्वे नियोजयेत्। (अर्थः) इसी कारण दुष्ट, अकुलीन, अपने वंश में उत्पन्न, जिसका सदाचार ज्ञात नहि है, अहितवाला, दुष्टाचरणवाला, खराब भाषावाला, मन्द, अन्याय करनेवाला, केवल लोभ से, लालची को, दयाहीन, व्यसनों से युक्त ऐसे व्यक्ति को मंत्रिपद के लिए नियुक्त ना करे। [मूल] अनीतिज्ञः प्रधानादिपदाकाङ्क्षी दराशयः। उच्चप्राप्ये फले नूनमुद्बाहुर्वामनो यथा॥१४०॥(२.५३) (अन्वयः) (यः) नूनं दुराशयः, अनीतिज्ञः, प्रधानादिपदाकाङ्क्षी (अस्ति सः) उच्चप्राप्ये फले उद्बाहुः वामनः तथा (भवति)। (अर्थः) जो सचमुच दुराशयी, नीति को न जाननेवाला, प्रधानपदादि की इच्छा करनेवाला वह ऊंचे फल की प्राप्ति के लिए हाथों को ऊपर किये हुवे वामन के समान है। [मूल] शरीरसुखलोभेन सेवालस्यं करोति यः। राजवल्लभतां याति कथं स गुणवानपि?॥१४१॥(२.५४)
SR No.007785
Book TitleBuddhisagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangramsinh Soni
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2016
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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