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________________ प्रथमो धर्मतरङ्गः [मूल] यो न वेत्ति नरः कार्येष्वन्तरं पुण्यपाप्मनोः। चतुरः पण्डितम्मन्योऽप्यसतामग्रणीस्तु सः॥७८॥(१.७८) (अन्वयः) यो नरः पुण्यपाप्मनोः कार्येषु अन्तरं न वेत्ति सः पण्डितम्मन्यः चतुरः अपि तु असताम् अग्रणीः। (अर्थः) जो मनुष्य पुण्य और पाप के कार्यों में भेद या अन्तर को नहीं जानता वह खुद को पंडित माननेवाला चतुर होते हुवे भी दुर्जनों में अग्रेसर है। [मूल] जगदीशमहीपालगुरूणामपि सर्वदा। आज्ञाभङ्गं प्रकुर्वाणो नरो भवति किल्बिषी॥७९॥(१.७९) (अन्वयः) अपि सर्वदा जगदीशमहीपालगुरूणाम् आज्ञाभङ्गं प्रकुर्वाणः नरः किल्बिषी भवति। (अर्थः) सदैव जग के ईश्वर, राजा और गुरुओं की आज्ञा का भंग करता हुआ पुरुष पापी होता है। [मूल] व्यवहारेऽधिकारे वा न कुर्यात्कौतुकेष्वपि। जटिलिङ्गिद्विजातीनां कपटोद्घाटनं सुधीः॥८०॥(१.८०) (अन्वयः) सुधीः व्यवहारे अधिकारे वा कौतुकेषु जटिलिङ्गिद्विजातीनां कपटोद्घाटनं न कुर्यात्। (अर्थः) बुद्धिमान व्यक्ति को व्यवहार में, अधिकार में अथवा स्तुति में जटाधारी,लिङ्गि और ब्राह्मणों के रहस्य का उद्घाटन नहीं करना चाहिए। [मूल] वृथा परापवादादिकथाभिः पिशुनैः समम्। धर्मस्य समयो नैवाऽतिवाह्यः शुद्धबुद्धिना॥८१॥(१.८१) (अन्वयः) शुद्धबुद्धिना पिशुनैः समं वृथा परापवादादिकथाभिः धर्मस्य समयो नैवाऽतिवाह्यः। (अर्थः) शुद्धबुद्धिवाले लोगों के द्वारा कपट के समान व्यर्थ दुसरों की निन्दा इत्यादि के द्वारा धर्म के समय का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए। मूल] देवे गुरौ धर्मशास्र कपटं नाचरेद् बुधः। भाव्यं विशुद्धभावेन तेष्वादरवता सदा॥८२॥(१.८२) (अन्वयः) बुधः देवे गुरौ धर्मशास्रे कपटं नाचरेद्, तेषु सदा विशुद्धभावेन आदरवता भाव्यम्। (अर्थः) बुद्धिमान लोग को देव में, गुरुजनों में और धर्मशास्त्रों में कपट को नहीं करना चाहिए। उसमें सदैव शुद्धभावना के द्वारा आदरयुक्त रहना चाहिए। [मूल] तपस्विगुरुदेवर्षियोगिभिश्च समं क्वचित। नैव वैरवता भाव्यं नरेण शुभमिच्छता॥८३॥(१.८३) (अन्वयः) शुभं इच्छता नरेण तपस्विगुरुदेवर्षियोगिभिः च समं क्वचित् वैरवता नैव भाव्यम्। (अर्थः) शुभ की इच्छा करने वाले पुरुष के द्वारा तपस्वी, गुरु, देव, ऋषि और योगिओं के साथ कभी भी वैरयुक्त नहीं रहना चाहिए।
SR No.007785
Book TitleBuddhisagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangramsinh Soni
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2016
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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