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________________ बुद्धिसागरः [मूल] शरीरसंस्कारपरो नृत्यगीतादिसादरः। स्रगादिलोलुपश्चापि ब्रह्मचारी विनश्यति॥५१॥(१.५१) (अन्वयः) शरीरसंस्कारपरः, नृत्यगीतादिसादरः, स्रगादिलोलुपः, च ब्रह्मचारी अपि विनश्यति। (अर्थः) शरीरों के संस्कार से युक्त, नृत्य और गीत में आस्था रखनेवाला, माला आदि शृङ्गार में मग्न रहने वाला (ऐसा) ब्रह्मचारी विनाश को प्राप्त होता है। अथ यती। [मूल] विनिर्जितेन्द्रियग्रामः सर्वजीवदयापरः। सर्वशास्त्रार्थदर्शी च भिक्षुर्मोक्षपदं व्रजेत्॥५२॥(१.५२) (अन्वयः) विनिर्जितेन्द्रियग्रामः, सर्वजीवदयापरः, सर्वशास्त्रार्थदर्शी, भिक्षुः च मोक्षपदं व्रजेत्। (अर्थः) विशेष रूप से इंद्रियों के समूह को जितनेवाला, सभी जीवों पर दया करने वाला, सभी शास्त्रों के अर्थ को जाननेवाला ऐसा भिक्षु(संन्यासी) मोक्षपद को प्राप्त होता है। [मूल| सर्वसङ्गविनिर्मुक्तो यती धनपरायणः। बकवृत्तिः स विज्ञेयश्चण्डपाखण्डदण्डभृत्॥५३॥(१.५३) (अन्वयः) सर्वसङ्गविनिर्मुक्तः, धनपरायणः, चण्डपाखण्डदण्डभृत्, स यती बकवृत्तिः विज्ञेयः। (अर्थः) सभी संगति से मुक्त, धन में सदैव परायण (मग्न) रहने वाला, क्रोधी, पाखंड से(दम्भ से) दंड को धारण करने वाला वह मुनि बदक की वृत्ति के समान है, ऐसा जाने। [मल] आहारशुद्धिरहितो विरुद्धाचरणस्तु यः। मुक्तिं वाञ्छति मूढात्मा यतिधर्मं विडम्बयेत्॥५४॥(१.५४) (अन्वयः) आहारशुद्धिरहितः, विरुद्धाचरणः तु यः मुक्तिं वाञ्छति, (स) मूढात्मा यतिधर्मं विडम्बयेत्। (अर्थः) आहार की शुद्धि से रहित, धर्म के विरुद्ध आचरण करने वाला जो मुक्ति की इच्छा करता है, वह मूर्ख आत्मा(व्यक्ति) साधु के धर्म का उपहास करता है। [मल] अथ साधारणान् धर्मान्नरदेवस्य नन्दनः। सङ्ग्रामो वदति श्रेष्ठान् स्वयमाचरितान् शुभान्॥५५॥(१.५५) (अन्वयः) अथ नरदेवस्य नन्दनः सङ्ग्रामः स्वयं आचरितान्, शुभान्, श्रेष्ठान, साधारणान्, धर्मान् वदति। (अर्थः) अब नरदेव का पुत्र संग्राम खुद ने आचरण किया है ऐसे, शुभ, श्रेष्ठ, साधारण धर्मों को कहता है। [मूल] दुर्लभं मानुषं प्राप्य नयति व्यसनैस्तु यः। पर्वतोपलबुद्ध्यासौ चिन्तारत्नं परित्यजेत्॥५६॥(१.५६) (अन्वयः) दुर्लभं मानुषं प्राप्य तु यः व्यसनैः नयति पर्वतोपलबुद्ध्यासौ चिन्तारत्नं परित्यजेत्।
SR No.007785
Book TitleBuddhisagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangramsinh Soni
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2016
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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