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________________ (१८) और नवनिर्माण जैसे सभी क्षेत्रो में जैन अधिकारी और जैनश्रेष्ठिओं की आवाज का वजन रहता था। सामाजिक क्षेत्र में भी उनकी आवाज का अनुभव होता था, उनकी आवाज सुनाई देती थी। इस समय में मालवा में स्कृतिक और प्रशासनिक क्षेत्र में दो व्यक्तित्व का सन्मान था। वह थे कवि मंत्री मंडन और कवि संग्राम सिंह। मालवा के इतिहास में इन दोनों को बहोत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। ___ इसके अतिरिक्त और भी उल्लेखनीय नाम है जिन्होंने मालवा को प्रभावित किया। जैसे—संघपति होलीचंद्र, झांझण शा, संघपति धनराज, धरणा शा, पूंजराज, नरदेव सोनी, मेघ, शिवराज, वक्कल, जावड शा इत्यादि। दिगंबर भट्टारककों का कभी मालवा को ऐतिहासिक प्रदान रहा है। वर्तमान स्थिति में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि कट्टर धार्मिक असहिष्णु तुर्क शासकों ने जैन धर्मावलंबीओं को इतनी सुविधाएं क्यों दी? वे नये नये मुस्लीमों के प्रति सून्नीपंथ प्रति या तो शिया पंथी के प्रति उदार नहीं थे तो फिर जैनियों के प्रति उदार क्यों बने? सिर्फ लूट और मंदिर तोडने को मजहब समझनेवाले बर्बर, क्रूर और कट्टर शासकों के बीच जैन मंदिर, उपाश्रय, ज्ञानभंडार, धर्मशाला आदि कैसे बच गये? इसके कारण निम्नलिखित हो सकते है। १) भारत में विदेशी आक्रांताओं का प्रवेश होने के बाद मध्य एशिया और अफघानिस्तान की राजनैतिक एवं सामरिक परिस्थिति में परिवर्तन हो गया। भारत में सुलतानों ने अपने पैर जमा दिये थे और सत्ता और साम्राज्य को सम्हालने हेतु सेनापति और अमीरों की जरूरत थी। भारत में राज्यव्यवस्था और अनुशासन की जरूरत महसूस हो रही थी। मध्य एशिया और अफघानिस्तान की परिस्थिति में परिवर्तन होने से सेनापति, अधिकारी वर्ग, अमीरों का आगमन नहीं हुआ। भारत आये हुए अफघानों ने अपना नया कबीला बना लिया। अपनी अस्तित्व की रक्षा के लिये और महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिये वे भारत की प्रजा के साथ मीलने लगे। शास्ता के लिये सामरिक बल और प्रशासनिक व्यवस्था अनिवार्य होती है। अफघान शासकों को इन दोनों अनिवार्यताओं की पूर्ति के लिये धर्मपरिवर्तित हिंद, राजपूत और जैनों का सहकार लेने के लिये विवश होना पडा। दूरप्रदेश तक सीमाओं की रक्षा हेतु राजपूतों का सहकार्य लेना पडा और जब लूट का धन खत्म हो गया तो आर्थिक व्यवस्था हेतु जैनियों का सहारा लेना पडा। २) भारत में आये हये विदेशी मुस्लिमों को अपने आपको भारत का कायमी निवासी बनाने के लिये भारतीय प्रक्रियासे गुजरना पडा, उनको लगा कि कानून और व्यवस्था बनाये रखने के लिये स्थानिक प्रजातंत्रका विश्वास जितना जरुरी है। मध्यकाल को राजनैतिक परिस्थिति के परिप्रेक्ष्य में संघर्ष, ईर्ष्या का वातावरण चारों और फैला हुआ था। लूट और बर्बरता हदसे अधिक हो गई थी। ईस्लामी शासकों की युद्धनीति और ऐयाशीके कारण आर्थिक व्यवस्था पूर्ण रूप से बिखर गई थी। युद्ध में खर्च बहोत होता था, ऐयाशीके लिये वे बहोत घन लूंटाते थे। अतः राजकोश में धन की कमी हमेशा महेसूस होती थी। इसलिये उनको धनकी आपूर्ति के लिये धनिक वर्ग के पराधीन होना पड़ा, उस समय के धनपति अधिकतर जैन थे। इस्लामी शासकों ने उन्हें अपनी और आकर्षित किया उनको जीवन की और संपत्ति की सुरक्षा का विश्वास दिया। अतः मुस्लिमकाल में बहोत जैन परिवार प्रतिष्ठितवर्ग में गिने जाने लगे। जैनीओं के पास व्यापार-सम्बन्ध और व्यवस्था का अच्छा ज्ञान भी था,
SR No.007785
Book TitleBuddhisagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangramsinh Soni
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2016
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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