________________
(१७)
मालवा के बूरे दिन तब शरु हुए जब सन् १२३५ में दिल्ली का दारु सुलतान शमसुद्दीन इल्तुमीश ने मालवा के उज्जैन और अन्य प्रांतों को लूटा। सन् १३०५ में अल्लाउद्दीन खीलजी ने पूर्व मालवा के अंतिम राजा महलक दासाह) को पराजित करके परमार शासन को समाप्त कर दिया। तब से सन १४०१ तक मालवा दिल्ली की सल्तनत का ताबेदार रहा। तैमूर के आक्रमण के समय में मालवा की स्थिति अस्थिर और खराब थी तब मालवा के सूबेदार दिलावर खां घोरीने अपने आपको स्वतंत्र घोषित किया। सन् १४०५ में दिलावर खां का पुत्र अलप खां-होशंग खां घोरी के नाम से सत्ता में आया। उसने मांडवगढ (हाल-मांडू) को अपनी राजधानी बनाई।
सन् १४३५ में होशंग खां का निधन हो गया। उसका पुत्र महम्मद खां घोरी राजगद्दी पर आया। किंतु उसके मंत्री महम्मद खीलजी(प्रथम) ने उसको पदच्युत किया और मालवा में स्वतंत्र खीलजी शासन का प्रारंभ किया। सन् १४६९ में उसका देहांत हुआ। उसके बाद क्रम से ग्यासुद्दीन-नसीरुद्दीन-महम्मद खीलजी(द्वितीय) मालवा के शासक हए। किंतु इन शासकों का अधिकतर समय मेवाड के राणा थंभा और गुजरात के सुल्ता के साथ युद्ध करने में ही बीता। गुजरात के सुलतान बहादुर शाह ने महम्मद खीलजी(द्वितीय) को हराया और मालवा के राज्य को अपने अधीन किया। मुघल बादशाह हुमायूं ने बहादुर शाह पर आक्रमण कर मालवा से भगाया। दुर्भाग्य से हुमायूं ने बहादुर शाह को पूरी तरह निर्मूल नहीं किया परिणामतः बहादुरशाह ने फिर मालवा जीता और वहां मलूक खां नामक सूबेदार को नियुक्त किया। मलूक खां ने गुजरात पर आक्रमण किया और
त्र घोषित किया। किंत यह स्वतंत्रता अल्प समय तक ही रही। सन १५१२ में दिल्ली के सुलतान शेरशाह सूरी ने मालवा पर आक्रमण किया। वहां पर सुजावत खां को सुबेदार बनाया। इस प्रकार मालवा फिर से दिल्ली सल्तनत के अधीन हुआ। शेरशाह के मृत्यु के बाद सुजावत खां ने अपने आपको स्वतंत्र घोषित कर दिया। उसने अपने तीन पुत्रों के लिये मालवा के तीन भाग किये परंतु मलिक बैजिद ने दो भाइओं से राज्य छीन लिआ और बाजबहादूर के नाम से पूरे मालवा का शासक हो गया। ___अफघान सुल्तान बाजबहादूर भी बहोत समय राज्यसुख न पा सका। सन् १५६२ में अकबर ने आदम खां
और पीर महम्मूद नाम के दो सेनापतियों को मालवा जीतने के लिये भेजा। इन दोनो सेनापतिओं ने बडी बेरहमी से मांडवगढ को अपने हाथ में लिया और मालवा फिर से दिल्ली सल्तनत के अधीन हुआ। ____ मुघल राज्यकाल में अकबर-जहांगीर-शहाजहां और औरंगजेब का मालवा पर अधिकार रहा। अकबर के राज्य काल में आदम खां, अब्दूल खां, शियासुद्दीन, फकरुद्दीन मीञ शाहरुख, शिहब खां, नकीब खां उज्जैन के सुबेदार थे। जहांगीर के समय में उज्जैन का कारोबार मोमीद खां को हाथों में था।
औरंगजेब के समय में जफरखां और जसवंतसिंह मालवा के शासक रहे। औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् मराठों ने मालवा पर आक्रमण किया। मुगल सत्ता मालवा की सुरक्षा न कर सकी। मुगल सत्ता ने संधि की नीति अपनाई। अंततः सन् १७४१ में मालवा पूर्णतः मराठा शासकों के अधीन हुआ।
सुल्तानों के शासन काल में जैन धर्मावलंबियों ने मालवा में बहोत तरक्की की। राजनैतिक, प्रशासनिक