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________________ ४९८ अर्धमागधी व्याकरण (हासत कर्म करावे परिणामी रडतचि भोगावे) ११) जीवंतो नरो कल्लाणं पावइ। (धर्मो १८९) (शीर सलामत तर पगडी पचास) वाक्ये : १) एवं होऊ।। २) जं होइ तं होउ।। ३) इण्डिं जं होउ तं होउ।। पच्छा जं होउ तं होउ।। ४) गओ थेरं भूमिभाग। ५) सामित्तं कुणइ सव्वेसिं। ६) उठाए उठेइ। ७) सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ ८) सरणं उवेइ। ९) सो तुह आणं न मन्नेइ।। वदि॒ति आणाए।। आणं करेंति।। १०) अज्ज वि न ह किंचि वि विणटुं।। तह वि न किं पि विणटुं अज्ज वि।। ११) न किंचि अवरज्झइ। १२) अंगुलिं गलए दाऊण वमियमणेण। १३) किमित्थ अइक्वंतत्थसोयणे। १४) सत्तट्ठ पयाई अणुगच्छइ। १५) जहागया पडिगमा सव्वे। १६) जुवईण न गुज्झं साहियव्वं। १७) जइस्समहं जहासत्तीए। १८) महया महया सद्देणं आरसइ। १९) जएणं विजएणं वद्धावेइ। २०) आगया तस्स निद्दा। २१) चिंतिउं पयत्तो हं।। लग्गो परिभाविउं।। २२) तह वि न को वि गुणो जाओ।। न उणो (पुनः) को वि गुणो ताण संजाओ।। बहुएहिं पि कएहिं उवयारो हं गुणो न से जाओ।। २३) मे समुप्पन्नो पमोओ।। गरुयपमोओ मणम्मि संजाओ।। बहुएहिं पि कएहिं उवयारो हं गुणो न से जाओ।। २३) मे समुप्पन्नो पमोओ।। गरुयपमोओ मणम्मि संजाओ।। जाओ हिययस्स आणंदो।। २४) बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ।। परोप्परं एवं जपंति।। मा एवं भण।। सुणसु मह वयणं।। २५) न भूयं एयं नो भवइ न भावि कइया वि। २) मा वहउ को वि गव्वं एत्थ जए (जगात) पंडिओ अहं चेव। २८) बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ। २९) एयमटुं नो आढाइ नो परियाणाइ तुसिणीया संचिट्ठइ। ३०) पत्ता ते जोव्वणं।। कमेण पत्ता जोव्वणं।। ३१) को दोसो एत्थ तुम्हाणं।। को ममावराहो।। ३२) धस त्ति धरणीयलम्मि सो पडिओ।। निबद्धं दंतसंपुडं।। ३३) लोए अववाओ जायइ। ३४)तेण असमंजसं विहियं। ३५) अंगे न मायंति। ३६) खंडाखंडिं करेइ।। पाणेहिं कड्ढावेइ। जीवियाओ ववरोवेइ।। ३७) तेण सुओ नियरजे ठविओ।। ठाविओ जुवरायपए पिउणा।। ३८) पविठ्ठो भिक्खट्ठा तत्थ नयरम्मि। ३९) अगाराओ अणगारियं पव्वयइ। ४०) गवेसिउं आरद्धो। ४१) सासंकं मह हिययं। ४२) न एत्थ संदेहो। ४३) वत्तं पाणिग्गहणं महाविभूईए। ४४) न एत्थ अच्छरियं। ४५) उवविठ्ठा
SR No.007784
Book TitleArdhamagdhi Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK V Apte
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages513
LanguageMarathi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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