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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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'सविकल्प के द्वारा निर्विकल्प में आया'-ऐसा उपचार से कहा जाता है। स्वरूप के अनुभव का उद्यम करने में, प्रथम उसकी सविकल्प विचारधारा चलती है, उसमें सूक्ष्म राग व विकल्प भी होते हैं, परन्तु उस राग को या विकल्प को साधन बनाकर स्वानुभव में नहीं पहुँचा जाता। राग और विकल्पों का उल्लंघन करके, सीधा आत्मस्वभाव का अवलम्बन लेकर उसे ही साधन बनावें, तभी आत्मा का निर्विकल्प स्वानुभव होता है और तभी जीव कृतकृत्य होता है। शास्त्रों ने इसका अपार माहात्म्य किया है। स्वानुभूति को आत्मा का सर्वस्व कहा है।
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