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[ सम्यग्दर्शन : भाग - 6
धन्य है उनको...
जो स्वानुभव की चर्चा करते हैं चैतन्यस्वभाव के प्रति मुमुक्षु को उल्लास होता है
२०० वर्ष पहले पण्डित श्री टोडरमलजी लिखते हैं कि अध्यात्मरस के रसिक जीव बहुत ही थोड़े होते हैं । जो स्वानुभव की चर्चा करते हैं, उन्हें भी धन्य है ! वाह ! देखो, यह स्वानुभव के रस की महिमा ! जिसे विकार का रस छूटकर, अध्यात्म का रस रुचा है वे जीव भाग्यशाली हैं । सिद्धसमान सदा पद मेरौ - ऐसी अन्तर्दृष्टि और उसके स्वानुभव की भावना करनेवाले जीव वास्तव में धन्य हैं शास्त्र में भी कहा है कि -
तत्प्रति प्रीतिचित्तेन येन वार्तापि हि श्रुता । निश्चितं स भवेद्भव्यो भाविनिर्वाणभाजनम् ॥२३॥ चैतन्य की प्रीतिसहित करे उसकी कथा का श्रवण जो; वे भविकजन निश्चित् अहो ! शीघ्र पाते मोक्ष को ॥
अध्यात्मरस की प्रीति कहो या चैतन्यस्वभाव की प्रीति कहो, उसकी महिमा और फल दर्शाते हुए वनवासी दिगम्बर सन्त श्री पद्मनन्दिस्वामी पद्मनन्दिपच्चीसी में कहते हैं कि जिसने प्रीति चित्तपूर्वक - उत्साह से इस चैतन्यस्वरूप आत्मा की वार्ता भी सुनी है, वह भव्य जीव अवश्यमेव भविष्य में निर्वाण प्राप्त करता है, अर्थात् वह अल्प काल में अवश्य मोक्ष प्राप्त करेगा । चैतन्य के साक्षात् स्वानुभव की तो क्या बात! किन्तु जिसके अन्तर में उसकी ओर प्रेम जगा और रागादि का प्रेम छूटा, वह जीव भी अवश्य मोक्ष
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