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________________ www.vitragvani.com 44] [सम्यग्दर्शन : भाग-6 जाये, वहाँ भी ज्ञान, राग से पृथक होकर अन्तरस्वभाव में प्रवेश कर जाता है। पर्याय-पर्याय में ज्ञानी का ज्ञान, राग से भिन्न ही कार्य करता है। __अहा, तीनों काल को वर्तमान में जान ले-ऐसी ज्ञानपर्याय की शक्ति का जिसे विश्वास हो गया है, उसे बाह्य का क्षयोपशम बढ़ाने की आकुलता नहीं रहती; उसकी ज्ञानपर्याय, राग से पृथक् होकर अखण्ड ज्ञानस्वभाव के आश्रय से कार्य करती है और इसी प्रकार भविष्य में भी उस-उस समय की पर्याय में स्वभाव के आश्रय से तीनों काल को जानने की शक्ति प्रगट हो जाती है, उसका विश्वास स्वसन्मुख हुई वर्तमान पर्याय में आ जाता है। त्रिकाली द्रव्य-गुण तथा तीनों काल की पर्यायें-उन सब ज्ञेयों को स्वीकार किये बिना, उन ज्ञेयों को जानने के सामर्थ्यवाली ज्ञानपर्याय का भी स्वीकार नहीं हो सकता, इसलिए ज्ञान की एक शुद्धपर्याय का भी यदि वास्तव में स्वीकार करने जाये तो उस पर्याय के ज्ञेयरूप समस्त द्रव्य-गुण-पर्यायों का भी स्वीकार हो जाता है। द्रव्य के अस्वीकारपूर्वक अनित्य पर्याय का भी सच्चा ज्ञान नहीं हो सकता। अरे भाई! अपनी एक पर्याय की पूर्ण शक्ति का स्वीकार कर तो उसके अपार सामर्थ्य में तीन काल की समस्त पर्यायें और द्रव्य-गुण ज्ञेयरूप से समाये हुए हैं उन्हें स्वीकार करनेवाला ज्ञान, राग से भिन्न होकर कार्य करता है, फिर परसन्मुखी ज्ञान के ज्ञातृत्व को बढ़ाने की महिमा उसे नहीं रहती। उसका ज्ञान तो स्वसन्मुख एकाग्र होकर अपना कार्य करता है, और आनन्द का वेदन करते-करते मोक्ष को साधता है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007773
Book TitleSamyag Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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