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________________ www.vitragvani.com 36] [सम्यग्दर्शन : भाग-6 53- जो परमार्थ से बाह्य है, वह जीव, संसारगमन के और मोक्ष के हेतु को नहीं जानता हुआ अज्ञान से पुण्य की इच्छा करता है। ___54- पुण्य और पाप में कोई भेद नहीं-ऐसा जो नहीं मानता, वह मोह से युक्त होता हुआ घोर तथा अपार संसार में भ्रमता है। 55- मिथ्यात्व, अज्ञान, पाप और पुण्य उनका तीनों प्रकार से त्याग करके, योगियों को निश्चय से शुद्धात्मा का ध्यान करना चाहिए। ___56- जीव परिणामस्वभावरूप है, वह जब शुभ अथवा अशुभ परिणामरूप से परिणमता है, तब शुभ और अशुभ होता है और जब शुद्धपरिणामरूप परिणमता है, तब शुद्ध होता है। ___57- धर्मरूप परिणमित आत्मा, यदि शुद्ध उपयोगयुक्त हो तो निर्वाणसुख को पाता है और यदि शुभोपयोग से युक्त हो तो स्वर्गसुख को पाता है। 58- अशुभोदय से आत्मा कुमनुष्य, तिर्यञ्च अथवा नारकी होकर सदा हजारों दुःखों से पीड़ित होता हुआ संसार में अत्यन्त भ्रमण करता है। ____59- शुद्धोपयोग से प्रसिद्ध ऐसे अरिहन्त तथा सिद्धों को अतिशय, आत्मा से ही समुत्पन्न, विषयातीत, अनुपम, अनन्त, और विच्छेदरहित सुख होता है। ___60- रागादि संग से मुक्त ऐसे मुनि, अनेक भवों में सञ्चित किये हुये कर्मरूपी ईंधनसमूह को शुक्लध्यान नामक ध्यान द्वारा शीघ्र भस्म करते हैं। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007773
Book TitleSamyag Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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