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[ सम्यग्दर्शन : भाग - 6
आत्मसाधना के लिये उपयोगी बात
प्रश्न : हम शुद्धात्मा को विकल्प में तो लेते हैं, परन्तु उसका फल क्यों नहीं आता ?
उत्तर : कौन कहता है - विकल्प का फल नहीं आता ? विकल्प का फल पुण्य है और वह फल तो आता ही है, परन्तु विकल्प के फल में निर्विकल्प अनुभव चाहो तो वह कहाँ से आयेगा ? उससे तो उल्टे विकल्प में ही अटककर रहना होगा ।
तथा दूसरी मूल बात यह है कि शुद्धात्मा वास्तव में विकल्प में आता ही नहीं; शुद्धात्मा तो स्वसन्मुख ज्ञान में ही आता है। विकल्प और ज्ञान का कार्य एक नहीं, किन्तु भिन्न है ।
अनुभव तो ज्ञान के निर्णय का फल है; विकल्प का नहीं । ज्ञान को स्वभावसन्मुख करके जो निर्णय किया, उसका फल निर्विकल्प अनुभव है ।
प्रश्न : आत्मा की धारणा करने के बाद कब तक राह देखना ? उत्तर : जरा भी राह नहीं देखना | क्षणमात्र में अनुभव कर लेना। अकेली परसन्मुख धारणा, वह वास्तविक धारणा नहीं; आत्मा का सच्चा निर्णय और सच्ची धारणा का बल अल्प काल में आत्मा का अनुभव करायेगा ही । •
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