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________________ www.vitragvani.com 22] [सम्यग्दर्शन : भाग-6 नहीं करना कि इतना अधिक बाह्य वैभव होने पर भी, भगवान वन्दनीय कैसे? भाई! यह तो इन्द्र, महिमा द्वारा उसकी रचना करते हैं और भगवान के पुण्य का वैसा ठाठ है परन्तु उस विभूति का संयोग होने पर भी, भगवान को कहीं उसके प्रति मोह या राग नहीं है, इसलिए उस विभूति के कारण भगवान की सर्वज्ञता को या वीतरागता इत्यादि गुणों को कोई बाधा नहीं आती; इसलिए अनन्त चतुष्टय इत्यादि गुणों के धारक तीर्थङ्कर भगवन्त वन्दनीय हैं। ऐसे पूज्य तीर्थङ्कर भगवन्तों ने कैसा उपदेश दिया? कि जिसके द्वारा कर्म का क्षय हो-ऐसे शुद्धोपयोग का उपदेश भगवान ने दिया है परन्तु राग के पोषण का उपदेश भगवान ने नहीं दिया है। जो राग से लाभ मानवे, वह उपदेश भगवान का नहीं है। भगवान के शास्त्र में तो जिससे कर्म का क्षय होकर मोक्ष हो, उसका ही उपदेश है। सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र और तपरूप चतुर्विध आराधना, वह मोक्ष का कारण है। वे चारों वीतरागभावरूप हैं और जिनशासन में भगवान ने उसी का उपदेश दिया है। ऐसा मार्ग जो समझा, वही भगवान के उपदेश को समझा है। ऐसा उपदेश सुनकर, हे जीवों! सर्व प्रथम तुम सम्यग्दर्शन को आराधो, क्योंकि मोक्षार्थी जीव को सार में सार ऐसा जो रत्नत्रय, उसका मूल सम्यग्दर्शन है; इसलिए जिनशासन में उसकी आराधना सर्व प्रथम करना चाहिए-ऐसा सन्तों का उपदेश है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007773
Book TitleSamyag Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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