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सम्यग्दर्शन : भाग -6 ]
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बहुत से प्राप्त हुए हैं। इसलिए हे भव्य ! श्रीगुरु का उपदेश प्राप्त करके तू सम्यग्दर्शनधर्म तो अवश्य प्रगट कर । फिर विशेषशक्ति हो तो चारित्रधर्म का भी पालन करना । कदाचित् चारित्र के लिये विशेषशक्ति न हो तो भी चारित्र की भावना रखकर तू सम्यक् श्रद्धा तो अवश्य करना। हीनशक्ति का बहाना निकालकर तू सम्यग्दर्शन में शिथिल मत हो, तथा चारित्र का स्वरूप विपरीत मत मान ।
पञ्चम काल मोक्ष के लिये भले अकाल हो, परन्तु कहीं सम्यग्दर्शनादि धर्म के लिये वह अकाल नहीं है; पञ्चम काल भी धर्म काल है। जो जीव, सम्यक्त्वादि धर्म करे, उसे वह पञ्चम काल में भी हो सकता है । इसीलिए सम्यग्दर्शन के लिये अभी भी सुकाल है। सातवें गुणस्थान तक की दशा अभी साढ़े अठारह हजार (18500) वर्ष तक इस भरत क्षेत्र में विद्यमान रहेगी। इसलिए इस काल के योग्य सम्यक्त्वादि धर्म तू आत्मा की निज शक्ति से अवश्य करना। इतनी शक्ति तो तुझमें है । निज शक्ति से धर्म साधने पर तुझे ऐसा लगेगा कि अहो ! सन्तों के प्रताप से मेरे लिये तो यह उत्तम काल है।
धर्म काल अहो वर्ते! अध्यपि इस भरत में आज भी धर्मी जीवो हैं प्रभु श्री वीरमार्ग में ।
सर्वज्ञ की उपासना
अतीन्द्रियज्ञान-आनन्दरूप हुए सर्वज्ञदेव की वास्तविक उपासना अतीन्द्रियज्ञान द्वारा ही होती है; इन्द्रियज्ञान द्वारा या विकल्प द्वारा नहीं होती, इसलिए सम्यग्दृष्टि ही सर्वज्ञ का सच्चा उपासक है।
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