________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग-6]
[99
केवलज्ञान का निर्णय कौन कर सकता है ?
साधक के श्रुतज्ञान में भी अचिन्त्य ताकत है केवलज्ञान और सम्यक्मति-श्रुतज्ञान एक जाति के होने से मति-श्रुतज्ञान, केवलज्ञान का भी निर्णय कर सकते हैं। 'मुझे स्वानुभव हुआ या नहीं, अथवा मैं भव्य हूँ या नहीं, यह केवली जाने, अपने को इसका पता नहीं पड़ता' – ऐसे वचन ज्ञानी के नहीं होते। अपने स्वसंवेदनप्रत्यक्ष के बल से ज्ञानी तो नि:शङ्क (केवलज्ञानी जितना ही नि:शङ्क) जानता है कि मुझे मेरे आत्मा का स्वानुभव हुआ, भवकट्टी हो गयी और भव्य तो हूँ ही, किन्तु अत्यन्त निकट भव्य हूँ। आत्मा का आराधक हुआ हूँ और प्रभु के मार्ग में मिला हूँ। अब हमारे इस भवभ्रमण में भटकना नहीं होगा - ऐसा अन्दर से आत्मा स्वयं ही स्वानुभव की ललकार करता हुआ जवाब देता है।
प्रश्न : अज्ञानी भी केवलज्ञान का सच्चा निर्णय कर सकता है या नहीं?
उत्तर : भाई ! केवलज्ञान का सम्यक् निर्णय करने पर अज्ञान नहीं रहता क्योंकि केवलज्ञान का निर्णय उसकी जाति के अंश द्वारा ही होता है; उससे विरुद्ध भाव द्वारा केवलज्ञान का निर्णय नहीं होता। राग से या अज्ञान से केवलज्ञान का निर्णय नहीं होता। सामान्यरूप से वह भले केवलज्ञानी को स्वीकार करता हो परन्तु यदि उसका सच्चा स्वरूप पहचानकर स्वीकार करे तो वह अज्ञानी नहीं रहता। यही बात पण्डित टोडरमलजी ने मोक्षमार्गप्रकाशक में भी कही है—'अरहन्तदेव के कोई विशेषण तो पुद्गलाश्रित हैं
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.