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________________ www.vitragvani.com 90] [सम्यग्दर्शन : भाग-6 परभाव का सेवन छोड़ना। चौबीस घण्टे में प्रतिक्षण धर्मात्मा यह स्वभाव सेवन का कार्य कर रहे हैं। अज्ञानी चौबीसों घण्टे प्रतिक्षण परभाव के सेवन का कार्य कर रहे हैं। बाहर के काम तो ज्ञानी या अज्ञानी कोई एक क्षण भी नहीं करता। सम्यग्दर्शन होने के पश्चात् धर्मी को उपयोग कभी स्व में होता है और कभी पर में होता है; निरन्तर स्व में उपयोग नहीं रहता परन्तु सम्यक्त्व निरन्तर रहता है। वह सम्यक्त्व, स्व-उपयोग के समय प्रत्यक्ष और पर-उपयोग के समय परोक्ष-ऐसे भेद उसमें नहीं हैं; अथवा स्वानुभव के समय वह उपयोगरूप और परलक्ष्य के समय वह लब्धरूप-ऐसा भेद भी सम्यक्त्व में नहीं है। सम्यक्त्व में तो औपशमिक इत्यादि प्रकार हैं और वे तीनों ही प्रकार सविकल्पदशा के समय भी होते हैं। सम्यग्दर्शन हुआ, उतनी शुद्धपरिणति तो शुभ-अशुभ के समय भी धर्मी को वर्तती ही है। सम्यग्दर्शन हो, इसलिए वह जीव सदा निर्विकल्प अनुभूति में ही रहे-ऐसा नहीं है। उसे शुद्धात्म-प्रतीति सदा रहे, वह विकल्परहित होती है परन्तु अनुभूति तो कभी होती है। मुनि को भी निर्विकल्प अनुभूति धारावाही नहीं रहती; धारावाही दीर्घकाल तक निर्विकल्पता रहे तो केवलज्ञान हो जाये। स्वानुभूति, वह ज्ञान की स्व-उपयोगरूप पर्याय है; सम्यग्दर्शन को उस उपयोगरूप अनुभूति के साथ विषमव्याप्ति है, अर्थात् एक पक्ष के ओर की व्याप्ति है। जैसे केवलदर्शन और केवलज्ञान को अथवा तो आत्मा को और ज्ञान को तो समव्याप्ति है-अर्थात् जहाँ इनमें से एक होगा, वहाँ दूसरा भी होगा ही; और एक न हो, वहाँ दूसरा भी नहीं होगा—ऐसे दोनों में परस्पर अविनाभावीपना है, उसे Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007773
Book TitleSamyag Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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