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[ सम्यग्दर्शन : भाग-5
曲曲
મહાવીર
रौद्ररस के बदले तुरन्त ही शान्तरस प्रगट किया और वह सम्यक्त्व को प्राप्त हुआ ... इतना ही नहीं, उसने निराहार व्रत अंगीकार किया। अहा ! सिंह की शूर-वीरता सफल हुई। शास्त्रकार कहते हैं उस समय उसने वैराग्य से ऐसा घोर पराक्रम प्रगट किया कि यदि तिर्यंच गति में मोक्ष होता तो अवश्य वह मोक्ष को पाया होता ! उस सिंहपर्याय में समाधिमरण करके सिंहकेतु नाम का देव हुआ ।
तत्पश्चात् आत्मा की आराधना में अनुक्रम से आगे बढ़ते-बढ़ते वह जीव इस भरतक्षेत्र में चौबीसवें तीर्थंकर श्री महावीर परमात्मा हुए, उन्हें नमस्कार हो । •
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