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[सम्यग्दर्शन : भाग-5
उतरकर मुनियों ने सिंह को धर्म का सम्बोधन किया
'हे भव्य मृगराज! इससे पूर्व त्रिपुष्ट वासुदेव के भव में तूने बहुत वांछित विषय भोगे हैं और नरक के अनेक प्रकार के घोर दुःखों को भी अशरणरूप से आक्रंद कर-करके तूने भोगे हैं, तब दशों दिशाओं में शरण के लिये तूने पुकार की परन्तु कहीं तुझे शरण नहीं मिली। अरे! अभी भी क्रूरतापूर्वक तू पाप का उपार्जन कर रहा है ? तेरे घोर अज्ञान के कारण अभी तक तूने तत्त्व को नहीं जाना; इसलिए शान्त हो... और इस दुष्ट परिणाम को छोड़। ___ आकाशमार्ग से उतरकर अपने सन्मुख निर्भयरूप से खड़े हुए मुनिवरों को देखकर सिंह भी आश्चर्य को प्राप्त हुआ।अरे! सामान्य मनुष्य तो मुझे देखकर भय से दूर भागते हैं, उसके बदले ये मुनिवर तो आकाश में से उतरकर निर्भयरूप से मेरे सन्मुख आकर खड़े हैं ! दुनिया के साधारण प्राणियों की अपेक्षा ये कोई अलौकिक पुरुष हैं । इनकी शान्ति कोई परम अद्भुत है। ये मुझसे भय नहीं
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