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________________ www.vitragvani.com 182] [सम्यग्दर्शन : भाग-5 परमात्मा का पुत्र ROMAN अहो! सम्यग्दृष्टि जीव तो परमात्मा का पुत्र हो गया, साधक होकर वह सर्वज्ञ परमात्मा की गोद में बैठा, अब उसे केवलज्ञानउत्तराधिकार लेने की तैयारी है। मोक्षमहल की सीढ़ी पर चढ़ने का उसने शुरु कर दिया है। उसकी दशा का यह वर्णन है। सम्यक्त्व की अपार महिमा बतलाकर श्रीगुरु कहते हैं कि अहो ! ऐसे पवित्र सम्यग्दर्शन को बहुमान से धारण करो। किंचित् भी काल व्यर्थ गँवाये बिना, प्रमाद छोड़कर, अन्तर में शुद्धात्मा का अनुभव करके सम्यग्दर्शन को धारण करो। देव भी सम्यग्दृष्टि की प्रशंसा करते हैं कि वाह! धन्य तुम्हारा अवतार और धन्य तुम्हारी आराधना! भव का किया अभाव... ऐसा धन्य तुम्हारा अवतार! सम्यग्दर्शन द्वारा तुम्हारा मानव जन्म तुमने सफल किया! तुम जिनेश्वर के पुत्र हुए, तुम मोक्ष के साधक हुए! इन्द्र स्वयं सम्यग्दृष्टि है, अवधिज्ञानी है, समकित की महिमा स्वयं अन्दर अनुभव किया है; इसलिए असंयमी मनुष्य या तिर्यंच के भी समकित की वह प्रशंसा करता है। भले वस्त्र हो, परिग्रह हो, उससे कहीं सम्यग्दर्शन रत्न की कीमत घट नहीं जाती। मलिन कपड़े में लिपटा रत्न हो, उसकी कीमत कहीं घट नहीं जाती। इसी प्रकार गृहस्थ सम्यग्दर्शनरूपी रत्न असंयमरूपी मलिन कपड़े में बँधा हुआ हो, उससे कहीं उसकी कीमत घट नहीं जाती। सम्यग्दर्शन के कारण वह गृहस्थ भी मोक्ष का पंथी है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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