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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-5] [175 समझदार ज्ञान के भण्डार हो। इसीलिए चेतकर समझो और सम्यग्दर्शन को धारण करो। यह सम्यक्त्व की प्राप्ति का अवसर है। इसे व्यर्थ मत गँवाओ। ___ जो समझदार है, जो आत्मा भवदुःख से छूटने के लिये और मोक्षसुख के अनुभव के लिये सम्यक्त्व का पिपासु है-ऐसे भव्यजीव को सम्बोधन करके सम्यग्दर्शन की प्रेरणा देते हैं। प्रभु! यह तेरे हित का अवसर है। तू कोई मूढ़ नहीं, परन्तु समझदार है, सयाना है, हित-अहित का विवेक करनेवाला है, जड़-चेतन का विवेक करनेवाला है। इसलिए तू श्रीगुरु का यह उत्तम उपदेश सुनकर अब तुरन्त सम्यग्दर्शन धारण कर। इतने तक आकर अब विलम्ब मत कर। देहादिक से भिन्न आत्मा का अनुभव कर, उसका गहरा उद्यम कर। समझ ! सुन! चेत! सयाने! हे सयाने जीव! तू सुन, समझ और सावधान हो। चेतकर, विलम्ब के बिना सम्यक्त्व को धारण कर। मात्र सुनकर अटक मत, परन्तु उसे समझकर सावधान हो और तेरी ज्ञानचेतना द्वारा तेरे शुद्ध आत्मा को चेत... उसका अनुभव कर। सर्वज्ञ परमात्मा में जो है, वह सब तेरे आत्मा में भी है-ऐसा जानकर, प्रतीति करके स्वानुभव कर । मृग की तरह बाहर में मत ढूँढ़; अन्दर में है, उसे अनुभव में ले। अरे ! संसार में रुलते-रुलते अनन्त काल में महा कठिनता से यह मनुष्य अवतार मिला, उसमें भी ऐसा जैनधर्म और सत्संग मिला, सम्यग्दर्शन का ऐसा उत्तम उपदेश मिला, तो अब कौन ऐसा मूर्ख होगा कि ऐसा अवसर व्यर्थ गँवावे? भाई! काल गँवाये बिना Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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