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[सम्यग्दर्शन : भाग-5
बर
जय हो सम्यग्दर्शन धर्म की! जिसने अभी मोक्षसुख का स्वाद चखाया है
अहो, मोक्षार्थी जीवो! मोक्ष के आनन्द महल की पहली सीढ़ी सम्यग्दर्शन है... ऐसे सम्यग्दर्शन को जीवन में एक क्षण भी व्यर्थ गँवाये बिना तुरन्त ही धारण करो। ऐसा अवसर बारम्बार मिलना कठिन है... इसलिए चेतो... जागृत होओ... और आत्महित के इस अवसर को उत्साह से झपट लो। सम्यग्दर्शन द्वारा तुम्हारा जीवन अचिन्त्य आनन्दरूप बन जायेगा।
सम्यग्दर्शन की बहुत महिमा बतलाकर उसकी अत्यन्त प्रेरणा प्रदान करते हुए, श्रीगुरु कहते हैं कि हे भव्य! इस सम्यग्दर्शन को पहिचानकर, अत्यन्त महिमापूर्वक तू इसे शीघ्र धारण कर... किंचित् भी काल व्यर्थ गँवाये बिना त चेत जा और ऐसे सम्यग्दर्शन को धारण कर। क्योंकि यह सम्यग्दर्शन ही मोक्ष का प्रथम सोपान है; ज्ञान या चारित्र कोई भी इस सम्यग्दर्शन के बिना सच्चा नहीं होता। सम्यग्दर्शन के बिना समस्त जानपना और समस्त आचरण, वह मिथ्याज्ञान और मिथ्या आचरण है। यदि सम्यक्त्व बिना जीवन गँवाया तो फिर से ऐसा नरभव और ऐसे जैनधर्म का उत्तम योग मिलना कठिन है। अवसर गँवा देगा तो तेरे पछतावे का पार नहीं रहेगा। इसलिए हे भव्य जीव! तू अत्यन्त सावधान होकर चेत जा और अत्यन्त उद्यमपूर्वक शीघ्र ऐसे पवित्र सम्यग्दर्शन को धारण कर।
मोक्षमहल में चढ़ने के लिए रत्नत्रयरूप जो सीढ़ी है, उसका पहला सोपान सम्यग्दर्शन है; उसके बिना ऊपर की सीढ़ियाँ
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