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________________ 2] www.vitragvani.com [ सम्यग्दर्शन : भाग-5 मोक्षसुख की मजा की बात [ प्रवचनसार, गाथा 64, कार्तिक शुक्ल तेरस ] अहा! मोक्षसुख की मजा की बात सुनते हुए मुमुक्षु को सहज उल्लास आता है : ज्ञानी के श्रीमुख से आत्मा के अतीन्द्रिय स्वभावसुख की वार्ता सुनते हुए जिसके अन्तर में उल्लास आता है, वह मुमुक्षु जीव अवश्य मोक्ष प्राप्त करता है। ऐसे मोक्षसुख की अद्भुत बात दो हजार वर्ष पहले कुन्दकुन्दाचार्यदेव इस भरतक्षेत्र में सुनाते थे, वही बात गुरुदेव आज अपने को सुनाते हैं... आओ, आनन्द से उसका स्वाद चखें । श्री अरिहन्त भगवन्तों को शुद्धोपयोग के फल में प्रगट हुए महा अतीन्द्रियसुख की परम महिमा बतलाकर आचार्यदेव ने कहा कि अहो ! आत्मा का ऐसा जो परम सुख, उसकी श्रद्धा करनेवाला सम्यग्दृष्टि है, आसन्नभव्य है; अपने में ऐसे इन्द्रियातीत चैतन्यसुख का स्वाद जिसने चखा है, वही सर्वज्ञ के अतीन्द्रिय पूर्ण सुख की परमार्थ श्रद्धा कर सकता है। ऐसे सुख की जिसे खबर नहीं और इन्द्रिय-विषयों में ही सुख की लालसा कर रहे हैं, वे जीव आसन्नभव्य नहीं; वे तो विषयों में आकुल-व्याकुल वर्तते हुए दुःख में तड़पते हैं और घोर संसार में भटकते हैं । अतीन्द्रिय आत्मा को जाननेवाला प्रत्यक्षज्ञान तो उन्हें नहीं, एकान्त परोक्षबुद्धि द्वारा इन्द्रियों के साथ ही उन्हें मैत्री वर्तती है; महा मोह के अतिशय दुःख के कारण वे जीव वेग से बाह्य विषयों को रम्य मानकर उस ओर झपटते हैं, परन्तु उनमें सच्चे सुख की गन्ध भी नहीं मिलती, इसलिए वे जीव एकान्त दुःखी ही हैं । आचार्यदेव कहते हैं कि अरे ! इन्द्रियों की ओर ही जिनका Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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