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________________ www.vitragvani.com 148] [सम्यग्दर्शन : भाग-5 सच्ची शान्ति की शोध में + -[६] जैसे प्यासे जीव को पानी पीने से पहले भी सरोवर के किनारे आने पर पानी की शीतलता का वेदन होता है... उसी प्रकार सम्यक्त्वसन्मुख जीव, शान्ति के समुद्र के किनारे आया हुआ है.. उसे क्या होता है ? उसका यह वर्णन है। सम्यग्दर्शन होने से पहले आत्मसन्मुख जीव का वर्तन तथा विचारधारा किस प्रकार की होती है ? तथा समयग्दर्शन होने के बाद उसका वर्तन और विचारधारा किस प्रकार की होती है?इस सम्बन्ध में सर्व प्रथम बात यह है कि वास्तव में सम्यग्दृष्टि ही सम्यग्दृष्टि के अन्तर को जान सकता है।' सम्यक्त्व के पिपासु जीव उसे पहिचानने के लिये प्रयत्न करते हैं और वैसी दशा की भावना भाते हैं। उनकी पहिचान, भेदज्ञान का कारण है। जीव अनन्त काल से दुःखी हो रहा है; वह दुःख, पर के कारण नहीं परन्तु अपने स्वभाव को भूलकर परभाव से वह दुःखी हो रहा है - इस प्रकार जिसे अन्तर में दुःख का वेदन लगता है, वह सुख प्राप्ति का पुरुषार्थ करता है। उसे किसी न किसी प्रकार से सत् देव-गुरु-शास्त्र का निमित्त मिल जाता है और उनके बताये हुये मार्ग को वह जीव उत्साह से आदरता है । वह आत्मसन्मुख जीव मात्र बाह्य निमित्त में नहीं अटकता परन्तु वह गुरुवाणी, शास्त्र-स्वाध्याय इत्यादि द्वारा अन्तर में सुख-प्राप्ति का मार्ग खोजता है। जैसे-जैसे मार्ग मिलता जाता है, वैसे-वैसे उसका प्रमोद Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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