________________
www.vitragvani.com
132]
[ सम्यग्दर्शन : भाग-5
चाहिए - ऐसा विचारकर वह अन्तर्मुख होता है। एक आत्मार्थ साधना ही उसका लक्ष्य है।
अभी वर्तमान काल में भी ऐसे आत्मसन्मुख जीव दिखायी देते हैं, उनका पुरुषार्थ चालू है और वे भी आत्मानुभव प्राप्त करेंगे। ऐसे आत्मसन्मुख जीव दूसरे जिज्ञासु को भी आत्मा की अपार महिमा समझाकर सच्चा मार्ग बताते हैं और कुमार्गों से छुड़ाते हैं ।
अरे रे ! अभी तो दुनिया में कुगुरु अनेक प्रकार की युक्तियों से भोले जीवों को कुमार्ग में फँसाते हैं। दुनिया तो सदा ऐसी ही चलनेवाली है, परन्तु हे जिज्ञासु बन्धुओं! तुम ऐसा आनन्ददायक जैनधर्म और वीतरागमार्ग को प्राप्त हुए, आत्मस्वरूप समझानेवाले सन्तों का योग तुम्हें मिला, तो अब कुगुरुओं के समक्ष भूल-चूक से भी झाँककर भी मत देखो। क्योंकि उसमें आत्मा का अत्यन्त बुरा होता है। ऐसे सरस वीतराग जैनमार्ग को ही परम बहुमान से आदर करना, यही एक इस जगत में परम हितकर है।
हे भाई! यह अवसर प्राप्त करके तू जाग । अब नींद का समय पूरा हुआ ... इसलिए जागृत होकर, आत्मा को सम्हालकर, भवदुःख से छूटने का और मोक्षसुख को प्राप्त करने का उद्यम कर। यह सम्यक्त्व प्राप्ति का सुनहरा अवसर है।
सम्यग्दर्शन के पश्चात्...
श्रीगुरु के उपदेश से जो जीव जागृत हुआ, आत्मा का स्वरूप सम्हालकर स्वसन्मुख हुआ और सम्यग्दर्शन को प्राप्त हुआ; उस जीव का सम्पूर्ण जीवन पलट जाता है । जैसे अग्नि में से बर्फ बन
Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.