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(xiv)
अनुक्रमणिका
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लेख धर्मात्मा पीते हैं चैतन्य के आनन्दरस का अमृत.. मोक्षसुख की मजा की बात... शुद्धोपयोग का फल-अतीन्द्रिय महान सुख.... मोक्ष को साधने के लिये... सम्यग्दर्शन होने का वर्णन............... तीर्थंकरों के मार्ग में प्रवेश करने का द्वार. भूतार्थदृष्टि से ही सच्चा आत्मा दिखता है.... अत्यन्त मधुर चैतन्यरस............... सन्तों की पुकार............... सन्त बुलाते हैं-आनन्द के धाम में.... सिंह के बच्चे की बात....... नमस्कार हो... ज्ञानचेतनावन्त मुनिभगवन्तों को... आत्मा की कीमत कम मत आँक.. अभी ही सम्यक्त्व को ग्रहण कर........... एक हाथी अद्भुत पराक्रम............... सिंहपर्याय में सम्यग्दर्शन... समयसार का मङ्गलाचरण............... चलो, चलो... सब कुन्दप्रभु के साथ सिद्धालय में जायें... साधक के अन्तर में समयसार उत्कीर्ण है. करना सो जीना.. अनुभवरस-घोलन......
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